
Up Kiran, Digital Desk: उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर धार्मिक मुद्दों पर सियासी पारा चढ़ गया है। हाल ही में समाजवादी पार्टी (SP) के नेताओं द्वारा एक मस्जिद के दौरे ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया है, जिस पर भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। बीजेपी ने खासकर सपा सांसद डिंपल यादव के पहनावे को लेकर सवाल उठाए हैं और इसे 'तुष्टीकरण की राजनीति' करार दिया है।
बीजेपी का आरोप: 'सेलेक्टिव सेक्युलरिज्म' और वोट बैंक की राजनीति
बीजेपी प्रवक्ता ने डिंपल यादव के मस्जिद दौरे के दौरान पहने गए परिधान – सिर ढंककर साड़ी में दिखना – पर आपत्ति जताई है। बीजेपी का आरोप है कि समाजवादी पार्टी के नेता केवल 'वोट बैंक' साधने के लिए इस तरह के प्रदर्शन करते हैं।
उनका कहना है कि सपा के नेता जब हिंदू त्योहारों और धार्मिक आयोजनों में होते हैं तो उनका पहनावा और हावभाव अलग होता है, जबकि मस्जिद में वे एक विशेष धार्मिक पहचान अपनाने की कोशिश करते हैं।
बीजेपी के अनुसार, यह समाजवादी पार्टी का 'चुनिंदा धर्मनिरपेक्षता' (Selective Secularism) का उदाहरण है, जहाँ वे अपनी सुविधानुसार धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा पहनते हैं। बीजेपी ने आरोप लगाया कि सपा धार्मिक सद्भाव की बजाय राजनीतिक लाभ और ध्रुवीकरण की राजनीति कर रही है।
सपा का पलटवार: भारतीय संस्कृति और परंपरा का सम्मान
समाजवादी पार्टी ने बीजेपी के आरोपों को सिरे से खारिज किया है। सपा नेताओं का कहना है कि धार्मिक स्थलों पर सिर ढंकना और मर्यादित वस्त्र पहनना भारतीय संस्कृति और परंपरा का हिस्सा है, चाहे वह कोई भी धर्म हो। उन्होंने तर्क दिया कि डिंपल यादव का पहनावा मस्जिद में प्रवेश करते समय केवल सम्मान और विनम्रता का प्रतीक था।
सपा ने बीजेपी पर 'संकीर्ण मानसिकता' और मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश करने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि बीजेपी के पास विकास और जनता के मुद्दों पर बात करने के लिए कुछ नहीं है, इसलिए वे ऐसे अनावश्यक विवादों को हवा देकर समाज में विभाजन पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। सपा ने अपनी प्रतिबद्धता दोहराई कि वे सभी धर्मों और समुदायों का सम्मान करते हैं।
विवाद का राजनीतिक निहितार्थ
यह विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब आगामी चुनाव नजदीक हैं और उत्तर प्रदेश की राजनीति में हर छोटे-बड़े मुद्दे पर राजनीतिक घमासान तेज हो जाता है। बीजेपी और सपा दोनों ही एक-दूसरे पर राजनीतिक लाभ लेने और सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने का आरोप लगा रहे हैं।
यह घटना एक बार फिर दिखाती है कि कैसे धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीक भारतीय राजनीति में अक्सर राजनीतिक हथियारों के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं, खासकर चुनाव से पहले। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह विवाद किस दिशा में आगे बढ़ता है और इसका चुनावी नतीजों पर क्या असर पड़ता है।
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