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Up Kiran, Digital Desk: जब छत देने की योजना को ही राजनीतिक हथियार बना लिया जाए, तो जरूरतमंद ज़मीन पर ही रह जाते हैं और कागज़ों में खड़े हो जाते हैं झूठे मकान। हरदोई से आई रिपोर्ट यही चौंकाने वाला सच सामने रखती है।

प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के अंतर्गत हरदोई जिले में पात्रता सूची तैयार करने के लिए किए गए सेल्फ सर्वे और असिस्टेड सर्वे की जांच में जो तथ्य सामने आए हैं, वे योजना की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं।

परियोजना निदेशक ग्राम्य विकास अभिकरण अशोक कुमार मौर्य के अनुसार, अब तक की गई 73.87 प्रतिशत आवेदनों की जांच में केवल 1 प्रतिशत आवेदन ही सही पाए गए हैं। यानी, 99 प्रतिशत आवेदन अपात्र या फर्जी हैं। यह आंकड़ा न केवल हैरान करता है, बल्कि इस बात की भी गवाही देता है कि ज़मीनी हक़दारों को कैसे योजनाओं से वंचित किया जा रहा है।

सर्वे में चौंकाने वाले आंकड़े

हरदोई जिले की 1293 ग्राम पंचायतों में प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत पात्रता सूची में नाम जुड़वाने के लिए दो माध्यमों से आवेदन किए गए—सेल्फ सर्वे और असिस्टेड सर्वे (नामित कर्मचारी द्वारा)।

सेल्फ सर्वे से 65,814 परिवारों ने आवेदन किया, जिनमें से अब तक 48,615 की जांच में सिर्फ 412 परिवार पात्र पाए गए।

असिस्टेड सर्वे में 68,315 परिवारों ने आवेदन किया, जिनमें से 12,907 की जांच में मात्र 238 परिवार ही पात्र निकले।

इसका अर्थ यह है कि सेल्फ सर्वे में पात्रता दर 0.84% और असिस्टेड सर्वे में 1.84% रही है।

चुनावी फायदे के लिए हुआ सर्वे का दुरुपयोग

जांच में सामने आया है कि इस योजना को पंचायत चुनाव जीतने का उपकरण बना लिया गया। पंचायत प्रतिनिधियों, खासकर ग्राम प्रधानों और ब्लॉक प्रमुखों ने अपने चहेते मतदाताओं को खुश करने के लिए आवास सर्वे करवाया।

कुछ जगहों पर तो पशुओं के बाड़े, भूसे के कमरे और खेतों में तानी गई पन्नियों के नीचे चूल्हा रखकर "मौजूदा आवास" दिखाया गया। तस्वीरें खींचकर आवेदन फीड कर दिए गए। यह पूरी प्रक्रिया इतने सुनियोजित तरीके से हुई कि कर्मचारियों पर भी दबाव डालकर आंकड़ों में हेराफेरी की गई।

जिम्मेदारी तय होनी चाहिए

इस गंभीर अनियमितता ने स्पष्ट कर दिया है कि योजना को ज़रूरतमंदों तक पहुंचाने में किस स्तर पर चूक हुई है—या यूं कहें, जानबूझकर की गई है।

परियोजना निदेशक का दावा है कि अब पात्रता की जांच कड़े मानकों पर की जाएगी और न तो कोई अपात्र लाभ पाएगा और न कोई असली हकदार छूटेगा। लेकिन सवाल उठता है कि अब तक जो अपात्र नाम सूची में शामिल हो चुके हैं, क्या उन्हें चिन्हित कर बाहर किया जाएगा? और क्या इस फर्जीवाड़े के पीछे जिम्मेदार कर्मचारियों और जनप्रतिनिधियों पर सख्त कार्रवाई होगी?

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