धर्म डेस्क। संसार में प्रत्येक व्यक्ति को अपने पिछले जन्मों के कर्मों का फल वर्तमान समय में भोगना ही पड़ता है। शास्त्रों के अनुसार हमारे जीवन में जो कुछ अच्छा या बुरा घटित हो रहा है, उसके पीछे हमारे पिछले जन्म के कर्म ही हैं। पूर्व जन्म के आधार पर ही हमारा भाग्य निर्धारित होता है। यदि किसी ने अपने पिछले जन्म में ज्यादा पाप किए होंगे तो उसे इस जन्म में ज्यादा कष्ट भुगतने पड़ेंगे।
शास्त्रों के अनुसार इस जन्म में पुण्यदायी कर्म करके पिछले जन्म के पापों के प्रभाव को क्षीण किया जा सकता है। व्यक्ति अपने सद्कर्मों से अपने दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदल सकता है। यदि किसी व्यक्ति ने पूर्व जन्म में अपने गुरु अथवा बड़े-बुजुर्गों का अकारण अपमान किया हो तो इस जन्म में गुरु की सेवा-सत्कार कर पूर्व जन्म के ऋण से मुक्ति पाई जा सकती है।
धर्म शास्त्रों में कई प्रकार के ऋणों और उनसे मुक्ति के उपाय बताये गए हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुछ विशेष ग्रह स्थिति के कारण व्यक्ति की जन्म कुंडली में ऋण अथवा दोष उत्पन्न होते हैं। जैसे मातृ ऋण, पितृ ऋण, अजन्मा ऋण, ईश्वरीय ऋण, स्त्री ऋण, स्व ऋण, संबंधी का ऋण, पुत्री या बहन का ऋण इत्यादि। इन ऋणों को चुकाने तक व्यक्ति उसके भार से सदैव दबा रहता है। ऋण का प्रभाव जन्म-जन्मान्तरों तक व्यक्ति का पीछा करता रहता है।
शास्त्रों में सभी प्रकार के ऋणों और पूर्व जन्मों के कर्मों से मुक्ति के उपाय बताये गए हैं। ऋणों को उतारने के लिए वर्तमान जीवन में सही कर्मों का पालन करना महत्वपूर्ण है। गीता में भगवान् श्री कृष्ण ने कहा है कि आत्मा अजर-अमर है और मोक्ष की प्राप्ति तक शरीर बदलती रहती है, इसलिए मृत्यु केवल एक शरीर का त्याग है, न कि आत्मा का अन्त। हर जन्म के साथ जीवन की घड़ी चलने लगती है और हर जीव को अंततः मृत्यु का सामना करना पड़ता है। मृत्यु नई यात्रा की शुरूआत है, इसलिए आत्मा को सर्वोपरि मानकर मनुष्य को आत्म उन्नति के लिए हमेशा प्रयासरत रहना चाहिए। जन्म और मृत्यु का यह चक्र आत्मा के मोक्ष प्राप्ति तक चलता रहता है।
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