
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उनका कहना है कि शांति वार्ता अब ऐसे मुकाम पर पहुंच चुकी है, जहां से किसी नतीजे की उम्मीद की जा सकती है, लेकिन दुर्भाग्य से दोनों देशों की तरफ से युद्धविराम के प्रयासों को समर्थन नहीं मिल रहा है। ट्रंप ने साफ कहा कि जब तक दोनों पक्ष शांति के लिए प्रतिबद्ध नहीं होंगे, तब तक किसी भी पहल का कोई असर नहीं पड़ेगा।
व्हाइट हाउस में दिया तीखा बयान
ट्रंप ने शुक्रवार को व्हाइट हाउस में संवाददाताओं से बातचीत करते हुए कहा, “अगर दोनों में से कोई एक पक्ष बातचीत को मुश्किल बना देता है, तो हम कहेंगे कि आप मूर्ख हैं और हम यह प्रयास छोड़ देंगे।” उन्होंने इस बयान के जरिए यह साफ संकेत दे दिया कि अमेरिका की ओर से अब और धैर्य नहीं रखा जाएगा।
रूसी राष्ट्रपति पुतिन को लेकर ट्रंप का बयान
जब उनसे यह पूछा गया कि क्या रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन वार्ता में जानबूझकर देरी कर रहे हैं, तो ट्रंप ने कहा, “मुझे नहीं लगता कि पुतिन अकेले जिम्मेदार हैं। लेकिन यह जरूर कहूंगा कि दोनों ही पक्ष युद्धविराम के लिए इच्छुक नहीं हैं। यही सबसे बड़ी बाधा है।”
अमेरिका ने जताई नाराज़गी, चेतावनी दी
ट्रंप की यह टिप्पणी ऐसे समय आई है जब अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने भी सार्वजनिक रूप से इस मुद्दे पर चिंता जताई है। रुबियो ने शुक्रवार को कहा कि अगर आने वाले दिनों में कोई ठोस प्रगति नहीं हुई, तो अमेरिका रूस और यूक्रेन के बीच शांति समझौते की कोशिशों से हाथ पीछे खींच सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि महीनों की कोशिशों के बावजूद अब तक कोई ठोस समाधान नहीं निकल पाया है, जो बेहद निराशाजनक है।
शांति प्रयासों पर बढ़ता वैश्विक दबाव
रूस-यूक्रेन युद्ध को दो साल से ज्यादा समय हो चुका है और इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ा है। ऊर्जा संकट से लेकर खाद्य आपूर्ति की चुनौतियां और भू-राजनीतिक तनाव तक, इस युद्ध ने वैश्विक स्थिरता को बुरी तरह प्रभावित किया है। अमेरिका सहित कई देश लगातार शांति वार्ता को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन दोनों पक्षों की जिद और भरोसे की कमी हर प्रयास को विफल बना रही है।
क्या आगे होगा कोई समाधान?
फिलहाल स्थिति जमी हुई है। न तो रूस पीछे हटने को तैयार है और न ही यूक्रेन झुकने को। इस बीच डोनाल्ड ट्रंप जैसे बड़े नेताओं की ओर से यह बयान इस बात का संकेत है कि अब धैर्य की सीमा पार हो रही है। यदि जल्द ही कोई समाधान नहीं निकला, तो अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश अपनी रणनीति पर पुनर्विचार कर सकते हैं।
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