_1425591426.png)
Up Kiran, Digital Desk: इजरायल और फिलिस्तीन का संघर्ष सालों से चला आ रहा है और हर बार गाज़ा की झलकियां दुनिया को हिला देती हैं। बमबारी के मंजर, मासूमों की चीखें और ढही हुई इमारतों की तस्वीरें सोशल मीडिया और न्यूज़ चैनलों पर लगातार दिखाई देती हैं। जाहिर है, हालात देखकर सवाल उठता है कि जब इतने इस्लामिक देश नाराजगी जाहिर करते हैं, बयानबाजी करते हैं, इजरायल पर तीखी आलोचना करते हैं तो फिर वे कार्रवाई क्यों नहीं करते? आखिर क्या मजबूरियां हैं जो सिर्फ शब्दों तक सबकुछ सीमित रह जाता है?
राजनीति और रिश्तों की पेचीदगियां
सच्चाई यह है कि राजनीति में भावनाओं से ज्यादा रणनीति काम करती है। मुस्लिम देशों के आपसी संबंध इतने एकजुट नहीं हैं कि वे मिलकर कदम उठा सकें। कई देशों की अमेरिका और यूरोप से मजबूत आर्थिक और राजनयिक कड़ियां हैं, जो खुले तौर पर इजरायल के साथ खड़े रहते हैं। ऐसे में सीधे टकराव का मतलब होगा बड़े व्यापार और राजनीतिक समीकरणों को बिगाड़ना। वहीं, कुछ देशों के इजरायल से गुप्त व्यापारिक और सुरक्षा समझौते भी बताए जाते हैं, जिससे आधिकारिक टकराव करना और मुश्किल बन जाता है।
इजरायल की सैन्य ताकत
इजरायल छोटा देश है, लेकिन ताकत के मामले में वह क्षेत्र का भारी-भरकम खिलाड़ी है। आधुनिक हथियार, अत्याधुनिक मिसाइल सिस्टम, उन्नत वायुसेना और परमाणु क्षमता उसे और भी खतरनाक बनाती है। यही कारण है कि मुस्लिम देश इस सोच में रहते हैं कि सीधी जंग में कूदने से हालात नियंत्रण से बाहर जा सकते हैं और भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
पश्चिमी दबाव और वैश्विक राजनीति
अमेरिका और यूरोप लंबे समय से इजरायल के समर्थक रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी वे हर बार उसके पक्ष में खड़े हो जाते हैं। अगर कोई मुस्लिम देश सीधा सैन्य कदम उठाने की कोशिश करता है, तो उसे प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है। आर्थिक झटके और अंतरराष्ट्रीय अलगाव का डर कई देशों को पीछे हटने को मजबूर करता है।
--Advertisement--