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Up Kiran, Digital Desk: उत्तराखंड की ग्रामीण राजनीति में इस बार पंचायत चुनावों ने एक नई ऊर्जा और उम्मीदों का सैलाब ला दिया है। हरिद्वार जिले को छोड़कर प्रदेश के बाकी 12 जिलों में त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था के तहत छोटे स्तर की सरकार के गठन की प्रक्रिया जोर-शोर से आगे बढ़ रही है।
चुनाव को लेकर जो अनिश्चितता और संशय कई बार मंडराते रहे, वे अब धीरे-धीरे दूर हो चुके हैं। मौसम की बाधाओं को पार करते हुए ग्रामीण मतदाताओं ने पहले चरण के मतदान में उत्साहपूर्वक भाग लेकर राजनीतिक दलों के लिए समीकरण बदल दिए हैं। इस बदलाव ने सभी दलों को अपने रणनीतिक गणित पर पुनर्विचार के लिए मजबूर कर दिया है।
प्रदेश में कुल मतदाताओं की संख्या करीब 85 लाख है, जिनमें से लगभग 57 प्रतिशत मतदाता ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं। हालांकि हरिद्वार जिले के पंचायत मतदाताओं को यदि जोड़ दिया जाए तो यह प्रतिशत 60 के पार भी पहुंच जाता है। ऐसे में ग्रामीण मतदाताओं का फैसला न केवल पंचायत चुनाव, बल्कि आगामी विधानसभा चुनाव में भी निर्णायक भूमिका निभाएगा।
राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि इस बड़े मतदाता वर्ग के रुझान को समझ पाना बेहद चुनौतीपूर्ण है, इसलिए भाजपा और कांग्रेस जैसे मुख्य राष्ट्रीय दल अत्यंत सतर्कता से चुनाव परिणामों पर नजर बनाए हुए हैं। इन मतदाताओं के वोटों की दिशा निर्धारित करेगी कि आगामी विधानसभा में सत्ता की चाबी किसके हाथ में होगी।
पहले चरण के चुनाव में प्रदेश के 12 जिलों के 49 विकासखंडों में कुल 6049 पदों के लिए 17829 उम्मीदवारों की किस्मत मतदान के बाद तय हुई। दूसरे चरण के लिए मतदान 28 जुलाई को होना है। इस चुनाव में हिस्सा लेने वाले कुल मतदाताओं की संख्या 47.74 लाख से अधिक है, जो प्रदेश के कुल मतदाताओं का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
राजनीतिक मोर्चे पर इस पंचायत चुनाव को विधानसभा चुनाव की पूर्व संध्या माना जा रहा है। पहले चरण के चुनाव में शामिल क्षेत्रों में ज्यादातर पर्वतीय और दूर-दराज के ग्रामीण इलाके शामिल हैं, जहां राजनीतिक प्रतिस्पर्धा काफी कड़ी और दिलचस्प नजर आ रही है।
भाजपा ने ग्रामीण जनता के बीच विकास की योजनाओं और ‘डबल इंजन’ सरकार के विकास कार्यों के साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त रुख को प्रमुख मुद्दा बनाया है। वहीं, कांग्रेस ने इन दूरस्थ इलाकों में विकास की धीमी गति को अपनी चुनावी रणनीति का केंद्र बनाया है और पंचायत चुनाव के दौरान उत्पन्न हुई असमंजस की स्थिति को लेकर सरकार पर निशाना साधा है।
कांग्रेस को पिछले नगर निकाय चुनाव में पर्वतीय और अर्ध-ग्रामीण क्षेत्रों से बेहतर सफलता मिली थी, इसलिए इस बार भी पंचायत चुनाव में उसे उम्मीदें अधिक हैं। दूसरी ओर, भाजपा अपने चुनावी ब्रांड—प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और डबल इंजन सरकार—पर भरोसा जताते हुए पंचायत चुनावों में व्यापक जन समर्थन की उम्मीद कर रही है।
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