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Up Kiran, Digital Desk: भारत में शारदीय नवरात्रि के दौरान मनाई जाने वाली दुर्गा पूजा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है बल्कि यह समाज को जोड़ने वाला एक बड़ा सांस्कृतिक उत्सव भी है। पूरे देश में यह पर्व बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है। विभिन्न राज्यों में सजाए जाने वाले पंडाल, उत्सव की रौनक और भक्तों की श्रद्धा इस पर्व की महत्ता को दर्शाती है। इस वर्ष दुर्गा पूजा 27 सितंबर से शुरू होकर 2 अक्टूबर तक चलेगा, जिसमें दशमी के दिन सिंदूर खेल और प्रतिमा विसर्जन के साथ समापन होगा।

पांच दिनों का उत्सव और उनका महत्व

दुर्गा पूजा का आयोजन मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम, त्रिपुरा, बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में धूमधाम से किया जाता है। यह त्योहार सिर्फ धार्मिक क्रियाकलाप नहीं बल्कि लोगों के बीच सामूहिकता और सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करता है। उत्सव में ढाक की थाप, धुनुची नृत्य और भव्य आरती इस पर्व की भव्यता को कई गुना बढ़ा देते हैं। आइए, जानते हैं कि दुर्गा पूजा के प्रत्येक दिन का क्या महत्व है।

बिल्व निमंत्रण: पूजा की शुरुआत

दुर्गा पूजा के पहले दिन बिल्व निमंत्रण किया जाता है। यह दिन देवी को धरती पर आमंत्रित करने की रस्म के रूप में मनाया जाता है। इसे पर्व की शुरुआत माना जाता है और यह श्रद्धालुओं के भक्ति भाव को प्रदर्शित करता है।

षष्ठी: माँ का स्वागत

षष्ठी के दिन माँ दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना कर उनका स्वागत किया जाता है। नवपत्रिका स्नान का आयोजन होता है, जिसमें देवी के प्रतीकात्मक नौ पौधों को स्नान कराया जाता है और मूर्ति के पास रखा जाता है। यह दिन भक्तों के लिए विशेष होता है क्योंकि माँ की उपस्थिति का यह प्रारंभिक चरण है।

सप्तमी: माँ कालरात्रि की पूजा

सप्तमी के दिन माँ कालरात्रि की पूजा होती है। भक्त नये वस्त्र पहनकर गंगाजल से प्रतिमा का अभिषेक करते हैं और विभिन्न फूल, फल एवं मिठाइयाँ अर्पित करते हैं। इस दिन माता दुर्गा की स्तुति के लिए चालीसा या सप्तशती का पाठ किया जाता है। साथ ही, गुड़ का भोग लगाना और मंत्र जाप करना इस पूजा का अहम हिस्सा होता है।

अष्टमी: देवी का स्वरूप और कन्याओं की पूजा

अष्टमी का दिन दुर्गा पूजा में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन पुष्पांजलि के साथ साथ 1 से 16 वर्ष की कन्याओं को देवी रूप में सम्मानित किया जाता है। अष्टमी के दिन संध्या समय धनुची नृत्य का आयोजन होता है जो आध्यात्मिक माहौल को जीवंत करता है। इस दिन मां दुर्गा को 108 कमल और दीपक अर्पित करना शुभ माना जाता है।

महानवमी: शक्ति और श्रृंगार का दिन

महानवमी के दिन षोडशोपचार विधि से माँ दुर्गा की पूजा होती है। इसी दिन उनका महा स्नान और श्रृंगार किया जाता है। भक्त इस दिन चंडी पाठ करते हैं तथा धनुची नृत्य के माध्यम से माँ को शक्ति प्रदान करते हैं। कई स्थानों पर चंडी यज्ञ का आयोजन भी होता है। कन्या पूजन की परंपरा भी महानवमी से जुड़ी है, जो बालिकाओं को देवी का स्वरूप मानती है।

दशमी: समापन और सिंदूर खेल

दशमी के दिन दुर्गा पूजा का समापन होता है। इस दिन माँ की महाआरती होती है और विवाहित महिलाएं एक-दूसरे के गालों पर सिंदूर लगाकर पति की लंबी आयु की कामना करती हैं। इस अवसर पर माँ के चरणों के सामने शीशा रखा जाता है जिससे घर में सुख-समृद्धि की प्रार्थना की जाती है। भक्त ‘आसछे बोछोर आबार होबे’ का नारा लगाकर माँ को विदा करते हैं और प्रतिमा विसर्जित की जाती है।