धर्म डेस्क। इस समय पूरे मिथिलांचल में मधुश्रावणी पर्व की धूम है। नवविवाहिताएं पूरे उत्साह के साथ मधुश्रावणी व्रत रख रही हैं। 13 से 15 दिनों तक चलने वाला यह व्रत सिर्फ नवविवाहिताएं करतीं है। मधुश्रावणी सावन शुक्ल के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि गुरुवार से शुरू हो गई, जिसका समापन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया सात अगस्त को किया जाएगा। पखवारे भर चलने वाले मधुश्रावणी व्रत नवविवाहिताएं अपने मायके में ही करती हैं। इन चौदह दिनों की आराधना में नवविवाहिताएं नमक का सेवन नहीं करती हैं। मधुश्रावणी व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है।
मधुश्रावणी व्रत हर वर्ष सावन माह में पूरी निष्ठा के साथ किया जाता है। परंपरा के अनुसार इस व्रत के लिए नव विवाहिताओं की टोली सोलहों श्रृंगार कर फूल चुनती है। इसके बाद सखियों के संग बगीचे में जाकर बांस की नई डलिया को फूल, बांस के पत्ते और जूही से सजाती है। इसके बाद नवविवाहिताएं हंसी ठिठोली करते हुए घर पर पहुंचकर पूजा करतीं है।
मधुश्रावणी व्रत की खास विशेषता यह है कि इस व्रत में पुरुष ब्राह्मण नहीं, बल्कि महिला पूरे विधि-विधान से पूजा कराती है। इस व्रत में पति की दीर्घ आयु एवं सुख-समृद्धि के लिए भगवान शंकर एवं मां पार्वती के साथ ही साथ नाग देवता की पूजा की जाती है। इस व्रत को नवविवाहिताएं अपने मायके में करतीं है, लेकिन पूजा की सामग्री एवं अन्य सामान उसके ससुराल से ही आता है।
मिथिलांचल की संस्कृति पर आधारित मधुश्रावणी व्रत में विशेष रूप से मां पार्वती की पूजा की जाती है। व्रती नवविवाहिताएं ठुमरी एवं कजरी गाकर मां पार्वती को प्रसन्न करती हैं। पूजा के दौरान महिला पुरोहित द्वारा भगवान शंकर की कथा सुनाकर नवविवाहताओं को सुखमय दाम्पत्य जीवन जीने की कला सिखाई जाती है। नवविवाहिताएं भगवान शिव के भजन गाकर अपने पति के दीर्घायु होने का आशीर्वाद मांगती हैं। इस व्रत में भगवान शिव शंकर के साथ नाग देवता की भी पूजा की जाती है।
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