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धर्म डेस्क। भारत में दशहरा का पर्व बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। इसे विजय दशमी भी कहा जाता है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। विजयदशमी के दिन ही पुरुषोत्तम श्री राम से लंका के राजा अत्याचारी रावण का वध किया था। इसके साथ ही विजयदशमी का पर्व मां दुर्गा से भी जुड़ा है। शास्त्रों के अनुसार दशमी के दिन ही माता दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था। दशहरा पर्व हर साल आश्विन माह की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन मनाया जाता है। इस दिन बुराई के प्रतीक रावण के पुतले का दहन किया जाता है। इसके साथ ही इस दिन शस्त्र पूजन भी किया जाता है।

ज्योतिषविदों के अनुसार 12 अक्टूबर को सुबह 10 बजकर 59 मिनट पर दशमी तिथि का आरंभ होगा और 13 अक्टूबर को सुबह 9 बजकर 7 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। इसलिए दशहरा का पर्व 12 अक्टूबर को ही मनाया जाएगा। शाम को रावण का दहन किया जाएगा। दशमी के दिन ही दोपहर में 2 बजकर 4 मिनट से 2 बजकर 48 मिनट तक दशहरा पूजन के लिए शुभ मुहूर्त है।

उल्लेखनीय है कि दशहरा पर श्रवण नक्षत्र का शुभ संयोग बन रहा है। श्रवण नक्षत्र में ही दशमी पर्व मनाई जाती है। ज्योतिषविदों के अनुसार 12 अक्टूबर को सुबह 5 बजकर 24 मिनट पर श्रवण नक्षत्र प्रारंभ हो जाएगा और अगले दिन 13 अक्टूबर को सुबह 4 बजकर 27 मिनट तक रहेगा। रावण दहन के लिए श्रवण नक्षत्र में ही करने का विधान है। इसलिए 12 अक्टूबर को शाम में 5 बजकर 52 मिनट से शाम में 7 बजकर 26 मिनट तक रावण दहन होगा।

सनातन परंपरा में विजयादशमी को बेहद शुभ माना जाता है। सनातन मत को मानने वाले इस दिन नए व्यापार का आरंभ करते हैं। तमाम लोग इसी दिन भूमि, भवन या वाहन खरीदते हैं। इसी तरह लोग कई शुभ काम करते हैं। विजयदशमी के दिन अबूझ मुहूर्त माना जाता है, अर्थात पूरा दिन शुभ होता है। हालांकि, इस साल विजयादशमी शनिवार को पड़ रही है, इसलिए इसे शुभ नहीं माना जा रहा है। 

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