
भारत में ई-सिगरेट (E-cigarettes) और वेपिंग (Vaping) का इस्तेमाल तेज़ी से एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट (Public Health Crisis) का रूप ले रहा है, ख़ासकर युवाओं और टीनएजर्स के बीच। वेपिंग पर कानूनी रूप से प्रतिबंध (Banned) होने के बावजूद, इसके आकर्षक विज्ञापन, बच्चों को आकर्षित करने वाले स्वाद (Flavours) और बाज़ार में इसकी आसान उपलब्धता ने स्थिति को और ज़्यादा मुश्किल बना दिया है।
यह समझना ज़रूरी है कि यह समस्या 'स्मोकिंग' से कम हानिकारक नहीं है, बल्कि 'वेपिंग' (Vaping) कई नई चुनौतियों को जन्म देती है।
अभिभावकों के लिए क्यों है बड़ी चिंता?
माता-पिता को इस ख़तरे को बहुत गंभीरता से लेना होगा। यह समझने की ज़रूरत है कि आपका बच्चा भी इसका शिकार हो सकता है:
बच्चों को आकर्षित करने वाले स्वाद: वेप (Vape) कई सारे 'स्वादिष्ट' फ्लेवर में आते हैं, जैसे कैंडी, पुदीना या फल। बच्चे और टीनएजर्स इसे 'खतरनाक' सिगरेट की बजाय एक 'नॉर्मल फ्लेवर्ड चीज़' मानकर इसका इस्तेमाल शुरू कर देते हैं।
आसान छुपाव (Easy to Conceal): वेप डिवाइसेज़ बहुत छोटे होते हैं, अक्सर उन्हें USB स्टिक, पेन, या साधारण गैजेट की तरह छुपाया जा सकता है। यह बच्चों के लिए स्कूल, कॉलेज या घर में भी आसानी से वेपिंग करना संभव बनाता है।
निकोटिन और स्वास्थ्य जोखिम: वेप में मौजूद निकोटिन (Nicotine) उतना ही खतरनाक और एडिक्टिव होता है, जितना सिगरेट में होता है। युवावस्था में इसके संपर्क में आने से ब्रेन (Brain) का विकास प्रभावित होता है और बच्चों को आगे चलकर तम्बाकू उत्पादों (Tobacco Products) की लत लगने का जोखिम कई गुना बढ़ जाता है।
खुलकर संवाद करें: बिना डाँटे, बच्चों से वेपिंग के स्वास्थ्य जोखिमों (Health Risks) के बारे में खुलकर और प्यार से बात करें। उन्हें बताएँ कि फ्लेवर वाली चीज़ों के अंदर निकोटिन और टॉक्सिक केमिकल (Toxic Chemicals) हो सकते हैं।
लक्षण पहचानें: अगर बच्चा बार-बार मुँह ढके, बेवजह खाँसे या चिड़चिड़ाने (Irritable) लगे, तो माता-पिता को सतर्क हो जाना चाहिए। वेप को छिपाने की वजह से उन्हें पता भी नहीं चलता कि कब उनका बच्चा लत की तरफ बढ़ गया।
सख्ती नहीं, जागरूकता: सरकार और माता-पिता को मिलकर एक सचेत और निरंतर (Continuous) अभियान चलाना होगा, ताकि बच्चों को इन हानिकारक उत्पादों के मायाजाल से बाहर निकाला जा सके।
वेपिंग भारत में युवाओं के भविष्य के लिए एक 'खामोश स्वास्थ्य खतरा' है, जिसका सामना केवल अभिभावकों की जागरूकता और समय पर हस्तक्षेप (Intervention) से ही किया जा सकता है।