Up Kiran, Digital Desk: हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथ गरुड़ पुराण में मृत्यु के बाद आत्मा की यात्रा का विस्तार से वर्णन है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि मृत व्यक्ति की आत्मा तुरंत परलोक नहीं जाती बल्कि पूरे 13 दिन तक अपने घर और अपनों के बीच मौजूद रहती है। यही वजह है कि हमारे पूर्वजों ने 13 दिन के अंतिम संस्कार और श्राद्ध की परंपरा बनाई।
पहले तीन दिन: शरीर छूटने का सदमा
मृत्यु के क्षण से ही आत्मा शरीर से अलग हो जाती है। वह ऊपर से अपना पार्थिव शरीर और शोक मनाते परिजनों को देखती रहती है। इस दौरान उसे यह समझ नहीं आता कि अब वह जीवित दुनिया से अलग हो चुकी है। यह अवस्था बेहद उलझन भरी होती है।
चौथा से दसवां दिन: घर में भटकना और यादें ताजा करना
इसके बाद आत्मा पूरे घर में घूमने लगती है। वह अपना बिस्तर, पुराने कपड़े, पसंदीदा सामान और कोने-कोने को छूने की कोशिश करती है। कई बार रात में परिजनों को स्वप्न में या हल्की-सी झलक के रूप में दिखाई भी देती है। यह वह समय होता है जब आत्मा अपनी पुरानी जिंदगी को अलविदा कहने की तैयारी करती है।
तेरहवें दिन आते हैं पितृगण
गरुड़ पुराण कहता है कि ठीक 13वें दिन पूर्वजों की आत्माएं (पितर) नवीन आत्मा को लेने पहुंचती हैं। वे उसे आशीर्वाद देते हैं और अगले जन्म का रास्ता दिखाते हैं। इसलिए हिंदू संस्कृति में 13 दिन तक श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण को इतना महत्व दिया जाता है।
भूख-प्यास भी महसूस करती है आत्मा
ग्रंथ के अनुसार पहले दस दिनों तक आत्मा को भूख और प्यास का एहसास होता है। यह तृप्ति केवल पिंडदान और जल चढ़ाने से ही मिलती है। अगर ये कर्मकांड नहीं किए गए तो आत्मा भटकती रहती है और उसे शांति नहीं मिलती।
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