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Up Kiran, Digital Desk: भारतवर्ष में हजारों मंदिर ऐसे हैं, जो केवल धार्मिक श्रद्धा का केंद्र ही नहीं, बल्कि अपने पीछे अनोखे इतिहास और रहस्यमयी कहानियों को भी समेटे हुए हैं। इनमें से कुछ मंदिरों से जुड़ी मान्यताएं इतनी अद्भुत हैं कि आधुनिक युग में भी वैज्ञानिक कारणों से परे लगती हैं। ऐसा ही एक मंदिर उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले में स्थित है, जिसे लोदी बाबा धाम के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर की सबसे दिलचस्प बात यह है कि आज भी भारतीय रेलवे इसे श्रद्धा के साथ चढ़ावा चढ़ाता है—और इसके पीछे छिपी कहानी बेहद रोचक और रहस्यपूर्ण है।

दो सौ साल पुरानी आस्था की कहानी

अमेठी के गौरीगंज इलाके में स्थित यह मंदिर लगभग 200 वर्षों से लोगों की आस्था का प्रतीक बना हुआ है। यहां लोदी बाबा की पूजा होती है, जिन्हें एक संत के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह स्थल न केवल हिंदू श्रद्धालुओं के लिए पूजनीय है, बल्कि मुस्लिम समुदाय के लोग भी यहां श्रद्धा से आते हैं। बाबा की समाधि पर बना यह मंदिर हर साल हजारों भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

रेलवे के लिए बनी रहस्यमयी चुनौती

इस मंदिर से जुड़ा सबसे रोचक पहलू वह समय है, जब वाराणसी-लखनऊ रेल मार्ग का निर्माण हो रहा था। उस दौरान, जो पटरियां दिन में बिछाई जाती थीं, वे रात होते ही किसी अदृश्य ताकत के चलते अस्त-व्यस्त हो जाती थीं। पुलों के निर्माण में रुकावटें आती रहीं और बार-बार ट्रेनें तकनीकी समस्याओं का शिकार होने लगीं। यह घटनाएं इतनी बार दोहराईं कि रेलवे अधिकारियों के लिए यह समस्या विज्ञान से बाहर की लगने लगी।

लोदी बाबा का चमत्कार और चढ़ावे की परंपरा

समस्या का समाधान तब हुआ जब स्थानीय लोगों के सुझाव पर रेलवे अधिकारियों ने लोदी बाबा की पूजा करवाई और मंदिर में विधिवत चढ़ावा चढ़ाया। चमत्कारी रूप से उसके बाद सारी अड़चनें दूर हो गईं और रेल परियोजना सफलतापूर्वक पूरी हुई। तभी से रेलवे विभाग हर वर्ष इस मंदिर को नियमित रूप से चढ़ावा अर्पित करता है, और यह परंपरा आज तक कायम है।

बाबा का जीवन: एक संत, एक पहलवान

मान्यताओं के अनुसार, लोदी बाबा अपने समय के एक प्रसिद्ध पहलवान थे। एक बार वे किसी विवाह समारोह में पहुंचे, जहां परंपरा के अनुसार खूंटा उखाड़ने की रस्म होती थी। जब उन्होंने रस्म निभाई, तो वह खूंटा उनके मुंह पर आ लगा जिससे वह घायल हो गए। इसके बाद वे घोड़े पर सवार होकर वर्तमान मंदिर की भूमि पर आए और वहीं लेटकर प्राण त्याग दिए। यहीं से उनकी स्मृति में इस मंदिर की स्थापना हुई।

एक समुदाय की श्रद्धा और पांच पीढ़ियों की सेवा

बाबा की स्मृति में दलित समुदाय के लोगों ने स्थानीय लोगों की सहायता से मंदिर का निर्माण करवाया। इस पवित्र स्थल की सेवा अब उस समुदाय की पांचवीं पीढ़ी कर रही है। वे आज भी पूरे समर्पण से मंदिर की देखरेख और पूजा-पाठ की जिम्मेदारी निभा रहे हैं।

मन्नतों का केंद्र, जहां हर इच्छा होती है पूरी

इतिहासकार अर्जुन पांडे बताते हैं कि यह मंदिर चमत्कारों के लिए भी प्रसिद्ध है। मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु यहां सच्चे मन से प्रार्थना करता है—चाहे वह संतान प्राप्ति की कामना हो या किसी अन्य जीवनसंकट का समाधान—उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। यहां हर वर्ष एक भव्य मेला और विशाल भंडारे का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं।

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