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Up Kiran, Digital Desk: बांग्लादेश में राजनीतिक उलटफेर के बाद जिस तरह के कूटनीतिक समीकरण बन रहे हैं, वे भारत के लिए चिंता का विषय बनते जा रहे हैं। शेख हसीना के शासन का अंत होने और अर्थशास्त्री मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार के गठन के बाद से पड़ोसी देश में चीन और पाकिस्तान की मौजूदगी लगातार बढ़ती दिखाई दे रही है।
जानकारों का मानना है कि यूनुस सरकार की विदेश नीति का रुख साफ तौर पर भारत से दूरी और चीन-पाकिस्तान से नज़दीकी की ओर इशारा करता है। इस घटनाक्रम को लेकर नई दिल्ली में विदेश मामलों की संसदीय समिति को विशेष जानकारी दी गई है।
विदेश नीति पर विशेषज्ञों की चेतावनी
भारत-बांग्लादेश संबंधों को लेकर हाल ही में आयोजित एक अहम बैठक में पूर्व विदेश सचिव शिवशंकर मेनन, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अमिताभ मट्टू, ढाका में भारत की पूर्व उच्चायुक्त रीवा गांगुली दास और रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन ने समिति के सामने अपना विश्लेषण पेश किया।
बैठक की अध्यक्षता कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने की। थरूर ने बाद में मीडिया से बातचीत में बताया कि विशेषज्ञों ने बांग्लादेश में बदलते राजनीतिक परिदृश्य और भारत की रणनीतिक चिंताओं पर गहन जानकारी साझा की है। उनका यह भी कहना था कि समिति आने वाले हफ्तों में इस पर एक विस्तृत रिपोर्ट सार्वजनिक कर सकती है।
ढाका में क्यों गहरी हो रही है चीन-पाकिस्तान की पैठ?
कूटनीतिक सूत्रों का कहना है कि बांग्लादेश में शेख हसीना की सत्ता से विदाई के बाद जो सत्ता संरचना बनी है, उसमें चीन और पाकिस्तान के लिए ज़मीन तैयार होती दिखाई दे रही है। यह स्पष्ट है कि मोहम्मद यूनुस की अगुवाई वाली अंतरिम सरकार चीन से आर्थिक और सैन्य सहयोग को बढ़ावा दे रही है, जबकि पाकिस्तान भी सांस्कृतिक और धार्मिक संबंधों के ज़रिए अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में है।
इस पूरे परिदृश्य में भारत की भूमिका को सीमित करने की रणनीति चल रही है। नई दिल्ली की चिंता इस बात को लेकर भी है कि यह समीकरण क्षेत्रीय संतुलन को प्रभावित कर सकता है।
भारत-बांग्लादेश संबंधों में गिरावट के संकेत
शेख हसीना के नेतृत्व में भारत और बांग्लादेश के बीच पिछले कुछ वर्षों में जिस घनिष्ठ सहयोग की नींव रखी गई थी, वह अब डगमगाती दिख रही है। मानवाधिकारों और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा जैसे मुद्दों पर ढाका और दिल्ली के बीच मतभेद लगातार गहराते जा रहे हैं।
विशेषज्ञों ने यह भी बताया कि शेख हसीना सरकार के पतन के बाद बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमलों की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। भारत ने इस पर चिंता जताते हुए ढाका से स्पष्ट मांग की है कि वह अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को प्राथमिकता दे।
घुसपैठ पर नियंत्रण लेकिन सतर्कता जरूरी
हालांकि बैठक में भारत में अवैध रूप से प्रवेश करने वाले बांग्लादेशियों की संख्या में कमी आने की बात भी सामने रखी गई, लेकिन रणनीतिक स्तर पर यह मुद्दा पूरी तरह सुलझा नहीं है। सीमावर्ती इलाकों में अस्थिरता और धर्म-आधारित तनाव भविष्य में नई चुनौतियां उत्पन्न कर सकते हैं।
आगे की राह: सावधानी और रणनीतिक सक्रियता
बांग्लादेश में बनते-बिगड़ते समीकरणों को लेकर भारत को अब सतर्कता के साथ रणनीतिक सक्रियता भी दिखानी होगी। जहां एक ओर द्विपक्षीय संवाद की खिड़कियां खुली रहनी चाहिए, वहीं दूसरी तरफ चीन और पाकिस्तान की बढ़ती उपस्थिति पर पैनी नजर रखना ज़रूरी होगा।
सवाल यह भी है कि क्या भारत दक्षिण एशिया में अपने पुराने सहयोगियों को बनाए रखने की कोशिशों में फिर से वही कूटनीतिक भरोसा और संबंध स्थापित कर पाएगा, जो पिछले एक दशक में शेख हसीना सरकार के साथ बना था?
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