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नया शैक्षणिक सत्र शुरू हो चुका है, मगर बच्चों की पढ़ाई एक बार फिर मुश्किलों के भंवर में फंसती नजर आ रही है। एनसीईआरटी की असली किताबों की कमी ने नकली किताबों के बाजार को हवा दे दी है। हाल ही में दिल्ली के समयपुर बादली में पुलिस ने एक ऐसे गिरोह का पर्दाफाश किया, जो नकली किताबें छापकर स्कूलों और बाजारों में बेच रहा था। यह सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि एक बड़े रैकेट का हिस्सा है, जो बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है। आखिर यह नकली किताबों का खेल क्या है? यह बच्चों की पढ़ाई को कैसे नुकसान पहुंचा रहा है और इसे रोकने के लिए क्या किया जा सकता है? आइए, इस गंभीर मुद्दे को करीब से समझें।

नकली किताबों का बढ़ता बाजार

हर साल स्कूल शुरू होते ही बच्चों और परिजनों के सामने एक बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है एनसीईआरटी की किताबों की कमी। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) सीबीएसई स्कूलों के लिए किताबें छापती है, मगर सालों का अनुभव होने के बावजूद यह संस्था समय पर किताबें उपलब्ध नहीं करा पाती। नतीजा ये है कि बाजार में नकली किताबों का कारोबार जोर पकड़ लेता है।

हाल ही में दिल्ली पुलिस ने समयपुर बादली में एक गोदाम पर छापा मारकर हजारों नकली एनसीईआरटी किताबें जब्त कीं। यह गिरोह न केवल किताबें छाप रहा था, बल्कि इन्हें स्कूलों और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर भी सप्लाई कर रहा था। एक पुलिस अफसर ने बताया ये नकली किताबें इतनी सफाई से छापी जाती हैं कि आम आदमी को असली और नकली में फर्क समझना मुश्किल हो जाता है।

इस गंभीर समस्या को देखते हुए दैनिक जागरण ने एक तीन दिवसीय विशेष अभियान शुरू किया है। इस अभियान का मकसद है लोगों को बताना कि एनसीईआरटी की किताबें बच्चों की पढ़ाई के लिए क्यों जरूरी हैं, असली और नकली किताबों में क्या अंतर है और यह नकली किताबों का धंधा बच्चों की शिक्षा को कैसे नुकसान पहुंचा रहा है। साथ ही, यह भी समझने की कोशिश की जाएगी कि इस काले कारोबार का तंत्र कैसे काम करता है और इसे रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं।