
bihar ol farming: एक वक्त था जब ओल (जिसे हिंदी में यम या जिमीकंद भी कहते हैं) सिर्फ घर के खाने की थाली तक सीमित था। पूर्व में इसे जंगली फसल माना जाता था और लोग इसे अपने बगीचों या घर के पीछे उगाया करते थे। आय के दृष्टिकोण से इसकी खेती की बात किसी के जेहन में नहीं थी। मगर आज वक्त बदल चुका है। जागरूकता और आधुनिक तकनीक के दम पर किसान ओल को नकदी फसल के रूप में अपनाकर लाखों रुपये कमा रहे हैं। बिहार के सीतामढ़ी जिले में एक किसान इस बदलाव की जीती-जागती मिसाल बनकर उभरा है। आइए, जानते हैं उनकी कहानी और ओल की खेती के इस नए दौर को।
जिले के नानपुर प्रखंड के कोयली गांव में रहने वाले किसान शिवशंकर महतो और उनके तीन भाइयों ने ओल की खेती को नई दिशा दी है। पिछले चार सालों से वे एक एकड़ जमीन पर ओल उगा रहे हैं और हर साल करीब छह लाख रुपये की कमाई कर रहे हैं।
किसान महतो बताते हैं कि पहले ओल को घाटे का सौदा समझा जाता था। मगर अब ये सोने की खेती जैसा हो गया है। उनके मुताबिक, पारंपरिक खेती में मेहनत ज्यादा और मुनाफा कम था। मगर ओल की खेती ने उनकी किस्मत बदल दी। आज यह फसल न सिर्फ उनकी आजीविका का आधार बनी है बल्कि इसे खरीदने के लिए व्यापारी खुद उनके खेतों तक पहुंच रहे हैं।
ओल की खूबी सिर्फ इसकी कमाई तक सीमित नहीं है। शाकाहारी लोगों के लिए ये किसी वरदान से कम नहीं। महतो बताते हैं कि जो कोई मांस नहीं खाते उनके लिए ओल 'मटन' जैसा है। इसका टेस्ट ऐसा होता है कि इसे खाने में मजा आता है। सरकार इसकी खेती के लिए सब्सिडी भी देती है।