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Up kiran,Digital Desk : राजनीति में समय (Timing) बहुत मायने रखता है। ठीक उसी तरह, जैसे क्रिकेट में गलत समय पर शॉट मारने से विकेट गिर सकता है। कुछ ऐसा ही हालिया वाकया चंडीगढ़ को लेकर केंद्र सरकार के साथ हुआ है। दिल्ली में बैठी सरकार एक संविधान संशोधन विधेयक लाने की तैयारी कर रही थी, जिसका मकसद था चंडीगढ़ पर केंद्र का सीधा नियंत्रण बढ़ाना और इसे संविधान के अनुच्छेद 240 के तहत लाना।

लेकिन, जैसे ही इसकी भनक पंजाब बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं को लगी, वहां खलबली मच गई। उन्होंने साफ़ लफ्जों में हाईकमान को समझा दिया कि पंजाब के लोग इसे कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे और इसका सीधा असर आने वाले चुनावों पर पड़ेगा।

आखिर सरकार क्या बदलना चाहती थी?

इस पूरे मामले की जड़ एक 'अनौपचारिक नोट' (Informal Note) में छिपी है जो केंद्र की तरफ से पंजाब बीजेपी नेताओं को भेजा गया था। सरकार का तर्क बड़ा सीधा और प्रैक्टिकल था।

केंद्र का कहना है कि अभी चंडीगढ़ के लिए कोई भी नया कानून बनाना हो या पुराने में छोटा सा बदलाव भी करना हो, तो उसे संसद (Parliament) से पास कराना पड़ता है। यह एक लंबी प्रक्रिया है। वहीं, अगर चंडीगढ़ अनुच्छेद 240 में आ जाता, तो महामहिम राष्ट्रपति के एक आदेश से ही वहां की जरूरतों के हिसाब से तुरंत कानून बन जाते।

सरकार का कहना था कि

  1. चंडीगढ़ अभी दूसरों के (पंजाब-हरियाणा) कानूनों के भरोसे चल रहा है।
  2. इसे अपने 'मॉर्डन लॉ' (आधुनिक कानून) की जरूरत है।
  3. इससे राजधानी या नौकरशाही के ढांचे में कोई बदलाव नहीं होता।

पंजाब बीजेपी ने क्यों कहा 'Big No'?

तकनीकी रूप से सरकार की बात सही हो सकती है, लेकिन जज्बातों की दुनिया में तर्क नहीं चलते। पंजाब बीजेपी के नेताओं ने केंद्र को आईना दिखाते हुए कुछ कड़वी सच्चाइयां बताईं:

  • भावनाओं का ज्वार: पंजाब का बच्चा-बच्चा मानता है कि "चंडीगढ़ हमारा है" और इसे पंजाब को ही सौंपा जाना चाहिए। ऐसे में केंद्र का कोई भी दखल उन्हें यह संदेश देता कि चंडीगढ़ को उनसे हमेशा के लिए छीना जा रहा है।
  • किसान आंदोलन और अविश्वास: 2020-21 के किसान आंदोलन और कृषि कानूनों की कड़वाहट अभी पूरी तरह मिट नहीं पाई है। सिख समुदाय का एक बड़ा वर्ग केंद्र के फैसलों को शक की निगाह से देखता है।
  • कानून-व्यवस्था का खतरा: नेताओं ने डर जताया कि अगर यह बिल आया, तो पंजाब जैसे सीमावर्ती राज्य (Border State) में माहौल गरमा सकता है और बेवजह का उकसावा माना जाएगा।

टाइमिंग पर उठे सवाल

पंजाब बीजेपी के एक नेता का दर्द यह भी था कि जब पीएम मोदी सिखों को करीब लाने की इतनी कोशिश कर रहे हैं—गुरु तेग बहादुर जी का शहीदी दिवस मना रहे हैं, कुरुक्षेत्र जा रहे हैं—तो फिर ऐसे विवादास्पद मुद्दे को अभी छेड़ने की क्या जरूरत थी? पहले ही पंजाब यूनिवर्सिटी (PU) की सीनेट का मुद्दा गरम है, ऐसे में चंडीगढ़ वाला मुद्दा "जले पर नमक" छिड़कने जैसा होता।

फिलहाल, गनीमत यह रही कि सरकार ने जमीनी हकीकत को समझा और इस योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया। गृह मंत्रालय ने भी साफ कर दिया है कि ऐसा कोई बिल नहीं आ रहा। लेकिन इस घटना ने एक बात साबित कर दी कि चंडीगढ़ सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि पंजाब के लिए एक 'इमोशन' है।