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(पवन सिंह, पर्यावरण मूर्ख)

जंगल एक दिन में नहीं उगा करते और आप कभी भी पहाड़ बना नहीं सकते..!! हां! आप में नेचर को तबाह करने की जो हवस और वहशीपन है उससे आप सब मिलकर तबाह जरूर कर सकते हैं।  नेचर का भी एक स्वभाव है कि या तो उसे छेड़ो नहीं और छेड़ोगे तो वह आपकी "कांख में हाथ डालकर" आपकी पूरी हैसियत "तवे पर सिंकती हुई रोटी" की तरह पलट देगी। आज की "मानव सभ्यता के अवशेष" करोड़ों साल बाद डायनासोर के अवशेषों की तरह कोई और सभ्यता खोजेगी...वह भी तब ख़ोज पायेगी, जब यह धरती जीवन लायक रहेगी..!!! 
विगत  10 सालों यानी कि 2015 से 2025 तक में भारत में अंधाधुंध जंगलों की कटाई हुई है... तथाकथित विकास परियोजनाओं जैसे खनन, उद्योग, इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पर सबसे ज्यादा कुर्बानियां जंगलों व पेड़ों ने दी हैं... अलग-अलग तमाम रिपोर्ट्स के अनुसार भारत में इन बीते सालों में 1 हजार 700 वर्ग किमी से ज़्यादा का वन क्षेत्र नष्ट हो चुका है। सबसे तकलीफ़ देह बात यह है कि वनों की कटाई के मामले में "भारत यानी हम" वर्ष, 2015 से 2020 के मध्य दुनिया के शीर्ष देशों में से एक रहे हैं।  जहाँ हर साल औसतन 6.68 लाख हेक्टेयर यानी कि करीब 6  हजार 680 वर्ग कि०मी० जंगल  हमारे देश का राक्षसी कारपोरेट और उसके पैसे से संचालित सफेद टोपी, लालटाई बिरादरी व आर्डर...आर्डर वाले मी-लार्ड चबा गये..!!!जंगल कम होने से वर्षा चक्र बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है...और यह आने वाले सालों में और भी भयावह होगा। हालांकि सरकारी वेतनधारी लालटाई कुनबा यह बताता है कि बीते कुछ सालों में वनों की कटाई दर कम हुई है और भारत का वन बढ़ा है...
दूसरी ओर, जो मुख्य आंकड़े और तथ्य सामने आ रहे हैं उसके अनुसार तथाकथित "कारपोरेटीय विकास" जिसे अब आम जनता "चंदा विकास" कहती हैं, के कारण वर्ष, 2014-2024  के मध्य 1 लाख 73 हजार हेक्टेयर यानी करीब 1 हजार 730 वर्ग कि०मी० वन क्षेत्र भूमि को निपटा दिया गया है। जिससे हर साल करीब 17 हजार हेक्टेयर जंगल नष्ट हुए। जबकि वर्ष 2015-2020 की वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2015-2020 के बीच प्रति वर्ष 6 लाख 68 हजार हेक्टेयर यानी कि 6 हजार 680 वर्ग कि०मी० वनों को काट डाला गया..।
अरावली की पहाड़ियों व जंगलों पर कारपोरेटी राक्षसों, चंदा खाऊ नेताओं, लालटाई नक्सलियों व आर्डर-आर्डर कुनबे की नजर लग चुकी है। अरावली कटा तो सरिस्का व रणथंभौर अभयारण्य भी नष्ट होगा..यह भयावह वहशी चौकड़ी सिंगरौली, मध्य प्रदेश के विशाल जंगल को लगातार चबा रही है...हसदेव जैसा घना  छत्तीसगढ़ का जंगल भी उजाड़ दिया गया है...भागलपुर बिहार के जंगल काटे जा जा रहे हैं, उत्तरकाशी, उत्तराखंड में दुर्लभ देवदार के वन काटे जा रहे हैं, राजस्थान के राज्य वृक्ष खेजड़ी के वनों को काटा जा रहा है। अंडमान-निकोबार में  कम से कम 10 लाख पेड़, बागेश्वरधाम में करीब 5700 पेड़, हरियाणा -30,000 से अधिक पेड़ काटे जा रहे हैं...!! मुंबई का आर०ए० फारेस्ट रेंज भी काटा जा चुका है..
पूरी दुनिया अपने  प्राकृतिक संसाधनों और अपनी विरासतों को हजारों साल तक सँभाल कर रखती है..कारखाने लगाने के लिए वह वन क्षेत्र नहीं अनुपयोगी जमीन तलाशते हैं..वे वेटलैंड, तालाब, नदियां बचाते हैं..हमारे यहां नदियां मां है लेकिन नालों से बद्तर कर दी गई है..इनकी सफाई का पैसा भी भुखमरे व वहशी खा गये..!!
जंगल कभी रातों-रात नहीं उगा करते..!! एक जंगल को परिपक्व होने में 80-100 साल का वक्त लगता है और सरकार उसे 100 दिनों में नेस्तनाबूद कर देती है। 
एक सामान्य पीपल का पेड़ एक साल में लगभग 100 किलोग्राम ऑक्सीजन छोड़ सकता है, जबकि एक परिपक्व पेड़ प्रतिदिन लगभग 250 लीटर ऑक्सीजन दे सकता है।तुलसी 95% तक बरगद  80% तक ऑक्सीजन देता है...
एक व्यस्क पेड़ सालाना करीब 200 किलोग्राम ऑक्सीजन देता है, जो 2 लोगों के लिए पर्याप्त हो सकती है और एक पूर्ण विकसित पेड़ 4 लोगों के लिए एक दिन की ऑक्सीजन दे सकता है...एक स्वस्थ व्यक्ति एक दिन में औसतन 550 लीटर यानी  19 घन फीट शुद्ध ऑक्सीजन का उपभोग करता है, हालांकि यह मात्रा कम ज्यादा हो सकती है...
जंगलों की कटान ने बारिश के पैटर्न को डिस्टर्ब कर दिया है...मौसम अनिश्चित हो रहा है तापमान बढ़ रहा है और सूखे व बाढ़ जैसी चरम मौसमी घटनाएं बढ़ी हैं। 
2025 खत्म हो रहा है लेकिन एक बड़ी चेतावनी देकर जा रहा है और वह ये कि आप भले ही सत्ता के शीर्ष पर हों या न्याय के देवता बने फिरते हों या अकूत पैसे के सिंहासन पर हों...नेचर के सामने आपकी हैसियत दो कौड़ी की है.. वर्ष , 2025 में हिमालियन रीजन में हुई प्राकृतिक आपदाओं ने बड़े-बड़े फार्म हाऊस और बड़ी-बड़ी इमारतें जमींदोज कर डालीं..!!
वर्ष, 2025 का मानसून उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर, पंजाब के लिए सबसे ज्यादा विनाशकारी रहा।  भयावह भूस्खलन हुए, बादल फटे व बाढ़ आईं, जिसके कारण 600 से अधिक मौतें हुईं..!! वर्ष, 2024 का तापमान भी इशारे कर गया .. उत्तराखंड में हीटवेव के 25 दिन दर्ज किए गए, जबकि पहले ऐसे कभी नहीं हुआ.. लद्दाख में गर्मी बढ़ी... लेकिन सरकार को एक वहशी उद्योगपति को सौर ऊर्जा के लिए लद्दाख की सबसे संवेदनशील जमीन चाहिए...जबकि सभी को पता है कि जहां-जहां सौर ऊर्जा प्लांट हैं वहां-वहां तापमान में 3 से 4 डिग्री की बढ़ोतरी देखी गई है...!! लेह-लद्दाख के ग्लैशियरों के लिए यह घातक साबित होगा..!! प्रख्यात पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक को जेल में डालने से आप नेचर के क्रोध से नहीं बच सकते..!!! विनाश के लिए कमर कस लें...
तापमान बढ़ने से ग्लेशियर पिघल रहे हैं और हिमनद झीलों का क्षेत्रफल बढा है। वर्ष, 2011 से 2024 के बीच इसमें  10.81% की वृद्धि हुई यह लद्दाख, हिमाचल, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के लिए किसी टाइम बम से कम नहीं हैं..!!!
कारपोरेटी राक्षसों, चंदा खाऊ नेताओं, लालटाई नक्सलियों व आर्डर-आर्डर कुनबे ने मानव विनाश की एक ऐसी रूपरेखा तैयार की है कि एक न एक दिन जल्दी ही सब के सब मारे जायेंगे। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि इस देश की जनता जो एक "बेजान पत्थर" के टूटने, "हवाई किताब" के पन्ने के फटने पर तो उबलती है लेकिन जीवंत पहाड़ों, जीवनदायी नदियों व जंगलों के विनाश और स्कूलों के बंद होने पर चादर तानकर सोती है...!! ऐसी जनता एक दिन कीड़े-मकोड़े की तरह मसल दी जाती है..!!!