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मौत की सजा के प्रावधानों पर फिर से विचार करने की सुप्रीम कोर्ट की पहल के बावजूद बीते वर्ष देश भर की कई अदालतों ने 165 लोगों को मृत्यु की सजा सुनाई थी। यह पिछले 20 वर्षों में किसी एक वर्ष में फांसी की सर्वाधिक संख्या है। जिन लोगों को मौत की सजा सुनाई गई, उनमें से सबसे ज्यादा 51.2 % यौन शोषण के दोषी पाए गए।

नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (एनएलयू) दिल्ली के क्रिमिनल रिफॉर्म्स एडवोकेट ग्रुप प्रोजेक्ट 39-ए द्वारा जारी सातवीं 'भारत में मृत्युदंड: वार्षिक सांख्यिकी रिपोर्ट' में यह बात सामने आई है।

रिपोर्ट के अनुसार, इस साल मौत की सजा पाए अपराधियों की संख्या में इजाफा हुआ है क्योंकि अहमदाबाद ब्लास्ट मामले में एक ही मामले में 38 कैदियों को मौत की सजा सुनाई गई है. 2004 के बाद से मौत की सजा पाए कैदियों की यह सबसे बड़ी संख्या है।

देश के सर्वोच्च न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों के बीच मृत्युदंड के मामलों के निस्तारण की रिपोर्ट में कहा गया है कि बीते वर्ष अदालत ने 11 मामलों का निस्तारण किया जबकि उच्च न्यायालयों ने 68 मामलों का निस्तारण किया। हाईकोर्ट ने 4 केसों में मौत की सजा सुनाई है। 39 मामलों में 51 कैदियों की सजा कम की गई। बंबई उच्च न्यायालय ने भी डकैती के एक मामले में आजीवन कारावास को मौत की सजा में बदल दिया था।

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