Up kiran,Digital Desk : उत्तराखंड के जंगलों में हर साल लगने वाली भीषण आग के मामले में उच्च न्यायालय ने एक बार फिर बेहद सख्त रुख अपनाया है। एक जनहित याचिका पर स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई और कहा कि आग रोकने के लिए जमीनी स्तर पर कुछ भी नहीं किया जा रहा है। कोर्ट ने यहां तक कहा कि सरकार की तरफ से जो भी कार्रवाई दिखाई जा रही है, वह सिर्फ एक 'दिखावा' (प्रतीकात्मक) है।
क्या हुआ कोर्ट में?
दरअसल, हाईकोर्ट ने इस गंभीर मामले पर खुद ही संज्ञान लिया था। सुनवाई के दौरान, जाने-माने पर्यावरणविद् प्रोफेसर अजय रावत को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जुड़कर आग रोकने के उपायों पर अपने सुझाव देने थे। हालांकि, नेटवर्क में समस्या के कारण वह जुड़ नहीं सके। उन्होंने कोर्ट से अगली तारीख देने का अनुरोध किया, जिसे स्वीकार करते हुए कोर्ट ने 10 दिसंबर की तारीख तय की है। अब प्रोफेसर रावत व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश होकर अपने सुझाव देंगे।
न्यायमित्र ने खोली सरकार के दावों की पोल
सुनवाई के दौरान न्यायमित्र (कोर्ट के सहायक) ने एक बड़ा खुलासा करते हुए बेंच को बताया कि हाईकोर्ट 2021 से लगातार उत्तराखंड सरकार को जंगल की आग रोकने के लिए निर्देश दे रहा है, लेकिन आज तक जमीनी स्तर पर उन आदेशों का कोई ठोस पालन नहीं किया गया है।
'अगर काम होता, तो आग कम लगती' - कोर्ट की दो टूक
न्यायमित्र की इस दलील पर कोर्ट ने भी मुहर लगाते हुए कहा कि सरकार की तरफ से आदेशों के पालन को लेकर जो भी बातें कही जा रही हैं, वे सिर्फ 'प्रतीकात्मक' यानी दिखावटी हैं।
कोर्ट ने तर्क दिया कि अगर सरकार ने वाकई में इन आदेशों को 2021 से लागू किया होता, तो अब तक जंगल में आग लगने की घटनाओं में कमी आनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ है। हर साल आग का मौसम आते ही राज्य के जंगल बुरी तरह जलते हैं, जो यह साबित करता है कि सरकारी दावे और जमीनी हकीकत में बड़ा अंतर है। अब इस मामले की अगली सुनवाई 10 दिसंबर को होगी, जिस पर सबकी नजरें टिकी हैं।
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