
Up Kiran, Digital Desk:गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित महाकाव्य 'श्रीरामचरितमानस' का पंचम सोपान, 'सुंदरकांड', हिंदू धर्म में न केवल एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, बल्कि यह प्रभु श्री राम के अनन्य भक्त, पवनपुत्र हनुमान जी के अदम्य साहस, अटूट भक्ति और निःस्वार्थ सेवा का एक अद्भुत आख्यान भी है। सुंदरकांड का हर प्रसंग, हर चौपाई अपने आप में अनमोल ज्ञान और प्रेरणा का भंडार है। इसी सुंदरकांड में एक ऐसी चौपाई आती है, जो जीवन के हर क्षेत्र में समर्पण और कर्तव्यनिष्ठा का पाठ पढ़ाती है:
"हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम। राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम।
इस हृदयस्पर्शी चौपाई का अर्थ है कि जब हनुमान जी महाराज माँ जानकी जी का पता लगाने के लिए समुद्र पार कर रहे थे, तब मैनाक पर्वत ने उन्हें विश्राम करने के लिए आमंत्रित किया। तब हनुमान जी ने बड़े ही आदर से पर्वत को छुआ, उसे प्रणाम किया और उत्तर दिया कि “हे पर्वतराज! भगवान श्री राम का कार्य पूरा किए बिना मुझे भला विश्राम कहाँ मिल सकता है?”
यह दोहा हनुमान जी के चरित्र का वह पहलू उजागर करता है, जहाँ उनका प्रभु श्री राम के प्रति समर्पण सर्वोपरि है। वे अपनी व्यक्तिगत थकान, आराम या सुख-सुविधाओं से परे, केवल और केवल श्री राम के कार्य को पूरा करने में लीन रहते हैं। मैनाक पर्वत का विश्राम का प्रस्ताव उनके लिए एक प्रलोभन था, जिसे उन्होंने अपनी कर्तव्यनिष्ठा से ठुकरा दिया। यह सिखाता है कि जब हम अपने जीवन में किसी बड़े लक्ष्य या कार्य के प्रति समर्पित होते हैं, तो व्यक्तिगत आराम को गौण मानना पड़ता है। हनुमान जी का यह भाव, 'राम काज', यानी प्रभु का कार्य, उनकी अपनी पहचान से भी बड़ा था।
हनुमान जी: भक्ति और कर्मयोग के प्रतीक
हनुमान जी को केवल शक्ति का ही प्रतीक नहीं माना जाता, बल्कि वे भक्ति और कर्मयोग के भी आदर्श हैं उनकी भक्ति निष्काम है, यानी वे किसी फल की आशा किए बिना कर्म करते हैं। वे प्रभु की सेवा में स्वयं को पूर्णतः समर्पित कर देते हैं और अपने सभी कार्यों का श्रेय प्रभु को ही देते हैं। जब वे लंका में सीता जी का पता लगाकर वापस लौटते हैं, तब भी वे अपनी उपलब्धि का श्रेय प्रभु की कृपा और प्रताप को देते हैं, न कि अपनी शक्ति को।यह गुण उन्हें कलयुग में भी पूजनीय और प्रेरणा का स्रोत बनाता है।
यह चौपाई हमें क्या सिखाती है?
आज के भागदौड़ भरे जीवन में, हम अक्सर अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने से पहले ही थक जाते हैं या आराम करने लगते हैं। यह चौपाई हमें याद दिलाती है कि:
सुंदरकांड का पठन क्यों महत्वपूर्ण है?
सुंदरकांड का पाठ करने मात्र से ही मन को शांति और शक्ति मिलती है। हनुमान जी की कथाएँ हमें साहस, धैर्य और समर्पण का पाठ पढ़ाती हैं। विशेषकर यह चौपाई, हमें हर काम को पूरी निष्ठा से करने और आराम को तब तक टालने की प्रेरणा देती है, जब तक वह कार्य सफलतापूर्वक संपन्न न हो जाए
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