
Up Kiran, Digital Desk: मुंबई की लाइफलाइन कही जाने वाली लोकल ट्रेनों में 2006 में हुए भयावह बम धमाकों का मामला एक बार फिर सुर्खियों में है। हाल ही में इस मामले में कुछ लोगों को बरी किए जाने के बाद से सियासी गलियारों में एक नया विवाद खड़ा हो गया है। इसी बीच, मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर ए.एन. रॉय, जिनके कार्यकाल में इस मामले की जांच हुई थी, ने अपनी टीम द्वारा की गई जांच का जोरदार बचाव किया है।
क्या हुआ था 2006 में? जुलाई 2006 में, मुंबई की लोकल ट्रेनों में एक के बाद एक सात बम धमाके हुए थे, जिन्होंने मायानगरी को हिलाकर रख दिया था। इन धमाकों में सैकड़ों निर्दोष लोगों की जान गई थी और हजारों घायल हुए थे। यह एक जघन्य आतंकवादी हमला था, जिसकी जांच मुंबई पुलिस के लिए एक बड़ी चुनौती थी।
इस जघन्य अपराध के बाद मुंबई पुलिस ने तेजी से जांच की थी और कई लोगों को गिरफ्तार किया था। निचली अदालतों में कुछ दोषियों को सजा भी मिली थी। लेकिन, अब जब कुछ आरोपियों को बरी कर दिया गया है, तो पुलिस की जांच की प्रक्रिया पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
पूर्व कमिश्नर ए.एन. रॉय का बचाव: ए.एन. रॉय ने मीडिया से बात करते हुए साफ कहा कि उनकी टीम ने पूरी ईमानदारी, निष्पक्षता और पेशेवर तरीके से इस मामले की जांच की थी। उन्होंने जोर देकर कहा कि पुलिस ने सबूतों के आधार पर ही कार्रवाई की थी और उनका एकमात्र मकसद दोषियों को न्याय के कटघरे में लाना था।
उन्होंने बरी किए जाने के फैसले पर सीधे टिप्पणी करने से बचते हुए कहा कि अदालतें सबूतों के आधार पर फैसला लेती हैं और हर जांच प्रक्रिया को न्यायिक जांच से गुज़रना पड़ता है। रॉय ने जोर देकर कहा कि उनकी टीम ने दिन-रात एक करके इस मामले की गुत्थी सुलझाने की कोशिश की थी और उन पर लगे आरोप पूरी तरह निराधार हैं।
सियासी घमासान: हालिया बरी होने के बाद से विपक्ष ने सरकार और जांच एजेंसियों पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं, जिससे यह मामला फिर से राजनीतिक रंग ले चुका है। पुलिस की जांच की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए जा रहे हैं, जिसके जवाब में पूर्व कमिश्नर ने यह बयान दिया है।
यह मामला एक बार फिर दिखाता है कि आतंकवाद जैसे गंभीर अपराधों में जांच की सटीकता और न्याय प्रणाली की पारदर्शिता कितनी महत्वपूर्ण है। पूर्व कमिश्नर का यह बचाव पुलिस के मनोबल और उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। अब देखना यह है कि यह राजनीतिक विवाद आगे क्या मोड़ लेता है।
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