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Up Kiran, Digital Desk: नौकरी बदलना हर कर्मचारी का हक़ है, खासकर जब उसे कोई बेहतर मौका मिले। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि सिर्फ़ अच्छी नौकरी की तलाश में अपनी पुरानी कंपनी छोड़ने को 'नैतिक पतन' (Moral Turpitude) करार दिया जा सकता है? शायद नहीं! पर ऐसा ही एक मामला सामने आया था, जिस पर अब कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक बहुत ही बड़ा और ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाया है, जिसने देश के लाखों कर्मचारियों को राहत दी है। कोर्ट ने साफ़ कर दिया है कि बेहतर अवसर तलाशना कोई अपराध नहीं है।
क्या था पूरा मामला और कंपनी क्यों रोक रही थी पैसा?
यह मामला एक कर्मचारी से जुड़ा था जिसने अपनी पुरानी नौकरी छोड़कर एक अच्छी कंपनी जॉइन कर ली थी। पुरानी कंपनी ने उसे ग्रेच्युटी (Gratuity) का पैसा देने से मना कर दिया। ग्रेच्युटी वो पैसा होता है जो कोई कंपनी एक निश्चित समय तक सेवा देने के बाद कर्मचारी को देती है, जो एक तरह का उसका रिटायरमेंट या सेवा समाप्ति का लाभ होता है।
कंपनी का तर्क था कि कर्मचारी ने ठीक से काम नहीं किया या कंपनी के नियमों का उल्लंघन किया, और इसलिए उसने 'नैतिक पतन' किया है, जिसके कारण उसे ग्रेच्युटी नहीं मिलेगी। कंपनी का यह क़दम एक तरह से कर्मचारी को डराने या उसके हक़ के पैसे रोकने जैसा था।
कलकत्ता हाईकोर्ट ने लगाई कंपनी को फटकार: 'कर्मचारियों का हक़ नहीं रोक सकते'
जब यह मामला कलकत्ता हाईकोर्ट तक पहुँचा, तो अदालत ने कर्मचारी के पक्ष में फ़ैसला सुनाया। हाईकोर्ट ने अपने सख्त फ़ैसले में कहा:
'नैतिक पतन' नहीं है बेहतर अवसर: अदालत ने साफ़ किया कि कोई कर्मचारी अगर बेहतर संभावनाओं और अच्छे भविष्य के लिए अपनी नौकरी छोड़ता है, तो यह किसी भी हाल में 'नैतिक पतन' या 'जुर्म' नहीं कहा जा सकता। यह हर व्यक्ति का बुनियादी हक़ है।
कंपनी का दाँव उल्टा पड़ा: हाईकोर्ट ने कंपनी के तर्कों को ख़ारिज करते हुए उसे फटकार लगाई और निर्देश दिया कि वह तुरंत कर्मचारी की ग्रेच्युटी का बकाया भुगतान करे।
लाखों कर्मचारियों के लिए बड़ी ख़बर:कलकत्ता हाईकोर्ट का यह फ़ैसला उन सभी कर्मचारियों के लिए एक बड़ी राहत और हिम्मत है, जो अक्सर नौकरी बदलने पर अपनी पुरानी कंपनी द्वारा पैसे रोकने या डराने-धमकाने का सामना करते हैं। यह फ़ैसला कंपनियों को भी चेतावनी देता है कि वे कर्मचारियों के हितों का ध्यान रखें और उनके वैध बकाये को बेवजह न रोकें। यह दिखाता है कि हमारी न्यायपालिका हमेशा कर्मचारियों के हक़ के लिए खड़ी है।