Up kiran,Digital Desk : करियर के सफर में एक पड़ाव ऐसा जरूर आता है, जब हमें पहली बार 'लीडर' की कुर्सी मिलती है। खुशी तो होती है, लेकिन साथ में एक अजीब सा डर भी होता है। खासकर तब, जब आपकी टीम में ऐसे लोग हों जो उम्र और तजुर्बे में आपसे कहीं आगे हों। मन में यही सवाल चलता है- "मैं इन्हें काम कैसे बताऊंगा? क्या ये मेरी बात मानेंगे?"
देखिए, यह घबराहट होना बिल्कुल नॉर्मल है। शुरुआती महीनों में थोड़ी बहुत खटपट या मुश्किलें आ सकती हैं, लेकिन याद रखिए, यही वो वक्त है जो यह तय करता है कि आप आगे चलकर कितने बेहतरीन लीडर बनेंगे।
सिर्फ पद बढ़ा है, अहंकार मत बढ़ाना
लीडरशिप का मतलब सिर्फ सैलरी बढ़ना या प्रमोशन मिलना नहीं है। यह खुद को तराशने का एक मौका है। बहुत से काबिल लोग सिर्फ इसलिए पीछे हट जाते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वे तैयार नहीं हैं। लेकिन सच तो यह है कि थोड़ी सी तैयारी और सही लोगों के साथ से आप इस जिम्मेदारी को बखूबी निभा सकते हैं। बस जरूरत है- सही नेटवर्क और नजरिए की।
अपने 'सपनों के नेटवर्क' का इस्तेमाल करें
हम अक्सर 'नेटवर्किंग' शब्द को भारी-भरकम समझते हैं। आसान भाषा में कहें तो आपका नेटवर्क सिर्फ मोबाइल में सेव कांटेक्ट लिस्ट नहीं है, बल्कि यह आपकी असली पूंजी है। आपके पुराने बॉस, साथ काम कर चुके सहकर्मी या वो लोग जिनसे आप किसी इवेंट में मिले थे- ये सब आपकी ताकत हैं।
समय के साथ ये लोग भी अपनी जिंदगी में तरक्की कर रहे हैं। जब आप इनसे जुड़े रहते हैं, तो मुश्किल समय में ये न सिर्फ आपको सही सलाह देते हैं, बल्कि आपका हौसला भी बढ़ाते हैं।
रिश्ते दिल से बनाएं, मतलब से नहीं
अक्सर हम गलती करते हैं- हम लोगों से तभी बात करते हैं जब हमें काम होता है। अगर आपके पास कोई मेंटर या अनुभवी दोस्त नहीं है, तो ऑफिस, वर्कशॉप या सोशल मीडिया के जरिए नए लोगों से जुड़ें। लेकिन याद रखें, रिश्ते सिर्फ 'लेने' के लिए नहीं होते। असली रिश्ता वह है जो सम्मान पर टिका हो। लोगों की मदद करने की सोच रखें, तभी लोग आप पर भरोसा करेंगे।
'विन-विन' (Win-Win) वाला जादू
रिश्ता वही लंबा चलता है जिसमें दोनों का फायदा हो। अगर आपकी टीम में आपसे ज्यादा अनुभवी लोग हैं, तो उनसे डरे नहीं। उनका अनुभव लें और बदले में उन्हें वो सिखाएं जो आपको आता है- जैसे नई टेक्नोलॉजी या नया नजरिया।
इसे ही 'विन-विन' सहयोग कहते हैं। जब आप दूसरों की बात ध्यान से सुनते हैं और उनकी मदद करते हैं, तो आपकी 'बॉस' वाली इमेज अपने आप 'लीडर' वाली बन जाती है।
डर को कहें बाय-बाय
नेतृत्व या लीडरशिप अकेले चलने का नाम नहीं है। यह लोगों का हाथ पकड़कर साथ चलने का सफर है। शुरुआत में पैर डगमगाएंगे, लेकिन हर नई बातचीत आपको मजबूत बनाएगी। इसलिए अगर लीड करने का मौका मिले, तो पीछे मत हटिए। आपका नेटवर्क और आपकी मेहनत ही आपकी सफलता की सीढ़ी है।
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