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Up Kiran, Digital Desk: बिहार चुनाव में सीट बंटवारे को लेकर इंडिया गठबंधन के भीतर मतभेद उभरकर सामने आ गए हैं। लगभग बारह सीटों पर महागठबंधन के सहयोगी दल एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं, जिससे मुकाबला और भी जटिल हो गया है। पिछले चुनावों के अनुभव ने यह दिखाया है कि ऐसी 'फ्रेंडली फाइट' का फायदा एनडीए को ही होता रहा है।
इस बार बिहार का चुनाव बड़ा ही दिलचस्प और चुनौतीपूर्ण हो गया है। जैसे-जैसे पार्टियां अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर रही हैं, राजनीतिक माहौल और गरम होता जा रहा है। इंडिया गठबंधन के अंदर कई सीटों पर सहमति न बनने की वजह से विरोधी दलों के बीच सीधी टक्कर देखने को मिल रही है। खासकर कांग्रेस, आरजेडी, सीपीआई और आईआईपी के उम्मीदवार कई सीटों पर आमने-सामने हैं।
कांग्रेस ने इस चुनाव में कुछ सीटें अपने सहयोगियों को देने का बड़ा फैसला लिया है। उसने महाराजगंज सीट आरजेडी को और जमालपुर सीट आईआईपी को सौंप दी है, जबकि कुल 61 सीटों पर कांग्रेस ने उम्मीदवार उतारे हैं। इसके बावजूद करीब दस सीटों पर उसके सहयोगी दल भी मैदान में हैं, जिससे मुकाबला कांटे का हो गया है।
फ्रेंडली फाइट वाले क्षेत्र इस प्रकार हैं:
- कांग्रेस और आरजेडी के बीच पांच सीटें (वैशाली, लालगंज, कहलगांव, सुल्तानगंज, नरकटियागंज)
- कांग्रेस और सीपीआई के बीच चार सीटें (बछवाड़ा, राजापाकड़, बिहारशरीफ, करहगर)
- कांग्रेस और आईआईपी के बीच एक सीट (बेलदौर)
ऐसे मुकाबलों का इतिहास बताता है कि अधिकांश फ्रेंडली फाइट वाली सीटों पर पिछली बार एनडीए ने बढ़त बनाई थी। कांग्रेस को भी दो सीटों पर संकीर्ण जीत मिली थी। इसलिए इस बार भी इन लड़ाइयों से कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान होने की संभावना है।