
Up Kiran, Digital Desk: हिंदी साहित्य और सिनेमा के महान गीतकार, शायर और पटकथा लेखक, गुलज़ार, अपनी बेमिसाल शब्दों की दुनिया के लिए जाने जाते हैं। एक ऐसे रचनाकार जिन्होंने अपनी कलम से हर भावना को जीवंत कर दिया, चाहे वह प्रेम हो, विरह हो, या फिर आध्यात्मिकता। उनका जन्म संपूर्ण सिंह कालरा के रूप में हुआ था और वे स्वयं को एक मुस्लिम के रूप में पहचानते थे, लेकिन उनकी रचनाएं किसी एक धर्म या समुदाय तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि सार्वभौमिक भावनाओं को छूती थीं। उनकी प्रसिद्धि के शिखर पर ले जाने वाले गीतों में से एक, फिल्म 'बन्दिनी' का "मोरा गोरा अंग लई ले" गीत है, जो भगवान कृष्ण के प्रति राधा के अनन्य प्रेम का अद्भुत चित्रण करता है।
'मोरा गोरा अंग लई ले' - कृष्ण-भक्ति का अनमोल रतन:
यह गीत 1963 में आई बिमल रॉय की क्लासिक फिल्म 'बन्दिनी' का हिस्सा है, जिसे लता मंगेशकर ने अपनी सुरीली आवाज़ दी थी, संगीत सचिन देव बर्मन का था, और इसके बोल लिखे थे गुलज़ार ने। यह गीत राधा की उस मार्मिक पुकार को व्यक्त करता है, जब वह अपने प्रियतम भगवान कृष्ण से मिलने की तीव्र इच्छा रखती है। गीत में राधा अपनी गोरी काया को श्रीकृष्ण के श्याम (काले) रंग में बदलने की कामना करती है, ताकि वह रात के अंधेरे में आसानी से मिल सके और किसी की नजर उस पर न पड़े।
"मोरा गोरा अंग ले ले, मोहे श्याम रंग दे दे।
छुप जाऊंगी रात ही में, मोहे पी का संग दे दे।"
यह सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि राधा के समर्पण, प्रेम की गहराई और प्रियतम में विलीन हो जाने की उस अभिलाषा का प्रतीक है, जो ईश्वर के प्रति प्रेम का सर्वोच्च रूप है। यह गीत राधा की उस मनोदशा को दर्शाता है जहाँ वह अपनी पहचान को कृष्ण की पहचान में खो देना चाहती है, एक हो जाना चाहती है। यह ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण और प्रेम की वह अवस्था है जहाँ व्यक्ति स्वयं को भुलाकर केवल अपने आराध्य में लीन हो जाता है।
गुलज़ार की कलम से कृष्ण-प्रेम का अनूठा संगम:
यद्यपि गुलज़ार स्वयं मुस्लिम थे, उनकी रचनाओं में अक्सर विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों के तत्वों का समावेश दिखाई देता है। "मोरा गोरा अंग लई ले" जैसे गीत की रचना करके उन्होंने दिखाया कि कैसे कला और साहित्य सीमाओं को पार कर सकते हैं। उन्होंने राधा की भावनाओं को इतनी सूक्ष्मता और गहराई से पकड़ा कि यह गीत आज भी श्रोताओं के दिलों को छू जाता है। यह गीत गुलज़ार की बहुमुखी प्रतिभा का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसने उन्हें गीतकार के रूप में अपार प्रसिद्धि दिलाई।
'बन्दिनी' का ऐतिहासिक महत्व:
'बन्दिनी' फिल्म अपने समय की एक महत्वपूर्ण फिल्म थी, और इसके गाने, विशेष रूप से "मोरा गोरा अंग लई ले", ने इसे और भी खास बना दिया। यह गीत गुलज़ार के शुरुआती और सबसे यादगार कामों में से एक है, जिसने उन्हें भारतीय संगीत के परिदृश्य में एक विशिष्ट स्थान दिलाया।
गुलज़ार: एक अनमोल विरासत
गुलज़ार की रचनाएं केवल गीत नहीं, बल्कि जीवन के अनुभव, दर्शन और भावनाओं का एक अनमोल खजाना हैं। "मोरा गोरा अंग लई ले" जैसे गीतों के माध्यम से उन्होंने भारतीय संस्कृति, भक्ति और प्रेम के विभिन्न आयामों को अपनी अनूठी शैली में पिरोया है। उनका मुस्लिम होना उनकी कला की व्यापकता को कम नहीं करता, बल्कि उनकी रचनाओं की सर्वधर्म समभाव की भावना को और भी उजागर करता है।
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