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Up Kiran, Digital Desk: जब पवनपुत्र हनुमान जी माँ सीता की खोज में लंका पहुंचे, तो उनकी अद्भुत नगरी को देखकर वे मंत्रमुग्ध हो गए। रामचरितमानस के सुंदरकांड में इसका बड़ा ही मनोहारी वर्णन मिलता है। इसी प्रसंग में एक चौपाई आती है, "नाना तरु फल फूल सुहाये, खग मृग बृंद देखि मन भाए।
इस चौपाई का सीधा सा मतलब है कि लंका में हर तरह के पेड़-पौधे थे, जो तरह-तरह के फल-फूलों से लदे हुए थे।इन पेड़-पौधों की सुंदरता ऐसी थी कि वहां के पक्षी और जानवर भी उसे देखकर मन ही मन प्रसन्न हो रहे थे।] यह दृश्य हनुमान जी को भी बहुत अच्छा लगा।
यह चौपाई हमें सिखाती है कि जब हम किसी ऐसी जगह पर होते हैं जहाँ सब कुछ सुंदर, हरा-भरा और व्यवस्थित हो, तो हमारा मन भी शांत और खुश हो जाता है।यहाँ तक कि जो जीव-जंतु या बंदी भी उस माहौल को देखते हैं, वे भी प्रसन्न हो जाते हैं। यह दिखाता है कि प्रकृति में कितनी शांति और सुकून छिपा है, और कैसे यह हमारे मन को प्रभावित करती है।
यह चौपाई सिर्फ एक वर्णन नहीं है, बल्कि यह इस बात का प्रतीक भी है कि जहाँ प्रभु की कृपा होती है, वहाँ सब कुछ मंगलमय और आनंददायक होता है। जब हम प्रभु का नाम लेकर कोई भी काम शुरू करते हैं, तो वह मुश्किल भी आसान लगने लगता है और जीवन में सुख-शांति आती है।
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