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Up Kiran, Digital Desk: बिहार में इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों की सरगर्मियां तेज होती जा रही हैं। जहां एक ओर एनडीए गठबंधन आत्मविश्वास से भरा नजर आ रहा है, वहीं विपक्षी INDIA गठबंधन के भीतर मतभेद और असहमति की लहरें उठने लगी हैं। खासकर झारखंड की सत्तारूढ़ पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की नाराजगी ने गठबंधन की एकजुटता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। JMM खुद को बिहार चुनाव में महज 'मेहमान' नहीं, एक प्रभावशाली 'साझेदार' के रूप में देखना चाहती है।

बिहार में JMM को दरकिनार किए जाने से नाराजगी

INDIA गठबंधन में अब तक सीट बंटवारे को लेकर कई दौर की बैठकें हो चुकी हैं, जिनमें आरजेडी ने अहम भूमिका निभाई है। बताया जा रहा है कि आरजेडी अब तक चार बार सहयोगी दलों के साथ चर्चा कर चुकी है। हालांकि हैरानी की बात यह है कि इन चर्चाओं में एक बार भी JMM को शामिल नहीं किया गया, न ही सीटों को लेकर कोई प्रस्ताव रखा गया।

JMM की मांग है कि उसे बिहार में कम से कम 12 से 13 विधानसभा सीटें दी जाएं, लेकिन अब तक न तो गठबंधन की ओर से कोई आधिकारिक बातचीत हुई है और न ही किसी प्रकार का आश्वासन मिला है। यह रवैया JMM को अखर रहा है।

झारखंड में मजबूत पकड़, फिर भी उपेक्षा क्यों?

JMM का मानना है कि उसका जनाधार केवल झारखंड तक सीमित नहीं है। बिहार के कुछ आदिवासी बहुल इलाकों में भी पार्टी का प्रभाव है। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में JMM ने बिहार में किसी भी सीट पर उम्मीदवार नहीं उतारा था, ताकि INDIA गठबंधन को मजबूती मिल सके। लेकिन इसके बावजूद अब उसे बिहार की रणनीतिक बैठकों में जगह नहीं मिलना, JMM के नेताओं को खल रहा है।

JMM प्रवक्ता मनोज पांडे ने इस पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि उनकी पार्टी किसी की मोहताज नहीं है। “अगर INDIA गठबंधन हमें गंभीरता से नहीं लेता, तो हम स्वतंत्र रूप से चुनाव मैदान में उतर सकते हैं,” उन्होंने दो टूक कहा।

कांग्रेस से भी तल्खी, सहयोगियों की गतिविधियों पर सवाल

JMM की नाराजगी सिर्फ RJD से नहीं है। पार्टी को कांग्रेस की कुछ गतिविधियां भी रास नहीं आ रहीं। झारखंड के संथाल परगना और कोल्हान क्षेत्र, जहां JMM का मजबूत आधार है, वहां कांग्रेस ने हाल ही में कई पैदल यात्राएं और पंचायत स्तरीय कार्यक्रम आयोजित किए हैं। JMM को संदेह है कि ये कदम कहीं सीटों पर दवाब बनाने की रणनीति न हों।

गौरतलब है कि 2024 के आम चुनाव में संथाल परगना की 18 में से 17 सीटों पर INDIA गठबंधन को जीत मिली थी, जिनमें JMM की बड़ी भूमिका रही। इसके बावजूद कांग्रेस द्वारा आक्रामक तरीके से ग्रासरूट पर सक्रियता बढ़ाना, JMM को असहज कर रहा है।

JMM की चेतावनी और महागठबंधन पर मंडराता खतरा

JMM का स्पष्ट संदेश है कि वह केवल झारखंड में सत्ता साझा करने वाला दल नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर उसकी भूमिका को भी मान्यता मिलनी चाहिए। पार्टी को इस बात की भी शिकायत है कि झारखंड में जब कांग्रेस और RJD ने सीटों की मांग की थी, तो JMM ने उन्हें पूरा सम्मान दिया था। लेकिन अब बिहार चुनाव की बारी आई है, तो उसे हाशिए पर रखा जा रहा है।

अगर यह असंतोष यूं ही बना रहा, तो इसके दूरगामी राजनीतिक परिणाम हो सकते हैं। झारखंड सरकार में कांग्रेस और RJD दोनों JMM के सहयोगी हैं। JMM की नाराजगी अगर और गहराई, तो न केवल बिहार में बल्कि झारखंड की सत्ता संतुलन पर भी असर पड़ सकता है।

क्या 5 जुलाई के बाद बदलेगा समीकरण?

इस बीच, RJD 5 जुलाई को अपना राष्ट्रीय अधिवेशन करने जा रही है। माना जा रहा है कि इसके बाद सीट बंटवारे को लेकर नए सिरे से चर्चा होगी। अब देखना यह होगा कि क्या JMM को उसका अपेक्षित स्थान दिया जाएगा या वह सचमुच अकेले चुनाव लड़ने की राह पर आगे बढ़ेगी।

 

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