Up kiran,Digital Desk : "टॉपर को नौकरी से बाहर कर दिया, और कम नंबर वालों को भेज दिया ट्रेनिंग पर!"... झारखंड लोक सेवा आयोग (JPSC) की एक ऐसी ही बड़ी गलती पर अब झारखंड हाईकोर्ट का डंडा चला है। कोर्ट ने JPSC की मनमानी पर लगाम लगाते हुए 8 होनहार अभ्यर्थियों को फौरन नौकरी देने का आदेश दिया है।
यह फैसला उन 8 अभ्यर्थियों के लिए एक बड़ी जीत है, जो अपनी मेहनत और मेरिट के दम पर परीक्षा पास करने के बावजूद दर-दर भटकने को मजबूर थे।
क्या है पूरा मामला?
कहानी थोड़ी अजीब, लेकिन सच है। JPSC ने 11वीं से 13वीं सिविल सेवा परीक्षा का रिजल्ट तो निकाला, लेकिन 10 अभ्यर्थियों को यह कहकर नौकरी नहीं दी कि हाईकोर्ट के एक दूसरे केस की वजह से 9 सीटें रिज़र्व रखनी हैं।
यहां तक तो ठीक था, लेकिन JPSC ने सबसे बड़ा खेल यहीं कर दिया। नियम के मुताबिक, उसे मेरिट लिस्ट में सबसे नीचे आए 10 उम्मीदवारों को रोकना चाहिए था। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। उसने कम नंबर वालों को तो नियुक्ति पत्र देकर ट्रेनिंग पर भेज दिया, और मेरिट में काफी ऊपर मौजूद 8 अभ्यर्थियों (जिनमें से एक अपनी कैटेगरी का टॉपर भी है) को बाहर का रास्ता दिखा दिया।
टॉपर होकर भी नौकरी से बाहर!
इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं जीतेंद्र रजक, जो SC कोटे में टॉपर थे और इतने अच्छे नंबर लाए थे कि उनका चयन जनरल कैटेगरी में हुआ था। लेकिन JPSC की इस अजीबोगरीब कार्रवाई की वजह से उन्हें भी नौकरी नहीं दी गई।
हाईकोर्ट में क्या हुआ?
जब यह मामला हाईकोर्ट पहुंचा, तो जस्टिस आनंद सेन की अदालत में इन 8 अभ्यर्थियों की तरफ से वकील अमृतांश वत्स ने दलील दी। उन्होंने कोर्ट को साफ-साफ बताया कि यह सरासर अन्याय है। जब सीटें रोकनी ही थीं, तो मेरिट में सबसे नीचे वालों की रोकनी चाहिए थीं, न कि टॉपर्स की। सरकार ने ज्यादा नंबर लाने वाले होनहार छात्रों की अनदेखी कर कम नंबर वालों को नौकरी दे दी है।
कोर्ट का फैसला: "बिना देरी किए नौकरी दो"
पूरी बात सुनने के बाद हाईकोर्ट ने इस मामले में जरा भी देर नहीं की। अदालत ने राज्य सरकार को साफ निर्देश दिया कि इन सभी आठ प्रार्थियों को बिना किसी देरी के तुरंत नियुक्ति दी जाए, उनसे ज्वाइन कराया जाए और उन्हें ट्रेनिंग पर भेजा जाए।
यह फैसला JPSC की कार्यशैली पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है और उन हजारों मेहनती छात्रों के लिए उम्मीद की एक किरण है, जो सिस्टम की गलतियों का शिकार हो जाते हैं।
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