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Up Kiran, Digital Desk: इटावा में कथावाचक के साथ हुए दुर्व्यवहार को लेकर अब संत समाज की ओर से भी प्रतिक्रिया सामने आनी शुरू हो गई है। बागेश्वर धाम के प्रमुख पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने इस घटना को लेकर गहरी नाराज़गी जताई है और एक वीडियो संदेश में इसे ‘निंदनीय’ बताया है।

पंडित शास्त्री हाल ही में विदेश यात्रा से लौटे हैं और लौटते ही जब उन्होंने इस विवाद की जानकारी ली, तो उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाएं न केवल धर्म की मर्यादा को ठेस पहुंचाती हैं, बल्कि सामाजिक सौहार्द्र को भी नुकसान पहुंचाती हैं।

“भगवान की कथा किसी जाति की बपौती नहीं”

अपने बयान में धीरेंद्र शास्त्री ने साफ कहा कि भगवान की भक्ति, भजन और कथा सुनाने का अधिकार हर किसी को है — चाहे वह किसी भी जाति, संप्रदाय या वर्ग से क्यों न हो। उन्होंने कहा, "वाल्मीकि हों या मीरा, सूरदास हों या कबीर — ये सभी भक्ति के रंग में रंगे हुए थे। इनमें किसी की जाति नहीं पूछी गई, उनकी पहचान उनके ज्ञान और भक्ति से हुई।"

उन्होंने रामचरितमानस का हवाला देते हुए कहा कि "कौआ कर्कश बोलता है लेकिन कालभुशुंडी को आज भी पूजनीय माना जाता है। यही सिखाता है कि ज्ञान और श्रद्धा जाति से ऊपर हैं।"

“अगर कोई दोषी है, तो कानून अपना काम करेगा”

इटावा की घटना पर बोलते हुए उन्होंने समाज को संयम बरतने की सलाह दी। उनका कहना था कि यदि किसी व्यक्ति ने कानून का उल्लंघन किया है, तो उसकी जांच और सज़ा का काम न्यायपालिका पर छोड़ देना चाहिए। उन्होंने कहा, "हम खुद अदालत नहीं बन सकते। यदि ऐसा करेंगे तो समाज में विद्रोह और जातिगत तनाव बढ़ेगा।"

“भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना है तो जातिवाद से ऊपर उठना होगा”

बाबा बागेश्वर ने अपने संदेश में एक बड़ा सामाजिक संदेश भी दिया। उन्होंने कहा कि यदि भारत को वास्तव में एक हिंदू राष्ट्र की ओर ले जाना है तो सबसे पहले जाति-पाति के भेदभाव को पीछे छोड़ना होगा। उन्होंने बताया कि नवंबर में वे दिल्ली से वृंदावन तक एक पदयात्रा निकालने जा रहे हैं, जिसका मकसद जन-जागरूकता फैलाना और समाज को भेदभाव से ऊपर उठने के लिए प्रेरित करना है।

“राजनीति में जाति की रोटियां सेंकने वालों को जवाब मिलना चाहिए”

धीरेंद्र शास्त्री ने राजनीतिक वर्ग पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि जो लोग जातिगत भावनाओं को भड़काकर सत्ता पाने की कोशिश करते हैं, समाज को ऐसे लोगों को करारा जवाब देना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि धर्म, आस्था और सनातन संस्कृति को किसी एक जाति या वर्ग में सीमित करना आत्मघाती है।

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