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Up Kiran, Digital Desk: आजकल बाज़ार में मिलने वाले कई खाद्य पदार्थ अपनी आकर्षक रंगत की वजह से लोगों, खासकर बच्चों को खूब लुभाते हैं। मिठाइयों से लेकर स्नैक्स और पेय पदार्थों तक में चटकीले रंगों का इस्तेमाल होता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये रंग हमारी सेहत पर क्या असर डालते हैं? हाल ही में इस गंभीर मुद्दे पर प्रकाश डाला है और बताया है कि कैसे कृत्रिम (आर्टिफिशियल) फूड कलर्स न सिर्फ हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं, बल्कि हमारे DNA तक को प्रभावित कर सकते हैं।

 इन कृत्रिम रंगों में ऐसे रसायन (Chemicals) होते हैं जो हमारे शरीर के लिए हानिकारक हो सकते हैं। ये रसायन शरीर के अंदर जाकर कई तरह की समस्याएं पैदा कर सकते हैं। इनमें से एक बड़ा खतरा है DNA को होने वाला नुकसान। हमारा DNA हमारी कोशिकाओं के निर्माण और कार्यप्रणाली के लिए महत्वपूर्ण होता है। यदि कृत्रिम रंगों के कारण DNA क्षतिग्रस्त होता है, तो यह लंबी अवधि में गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं, जैसे कि कोशिकाओं की असामान्य वृद्धि (जो कैंसर का कारण बन सकती है) या अन्य आनुवंशिक (Genetic) बदलावों का कारण बन सकता है।

 कृत्रिम फूड कलर्स को एलर्जी, बच्चों में अतिसक्रियता (Hyperactivity) और व्यवहार संबंधी समस्याओं, अस्थमा, त्वचा पर चकत्ते और पाचन संबंधी गड़बड़ियों से भी जोड़ा जाता है।  इन प्रभावों की गंभीरता व्यक्ति दर व्यक्ति अलग हो सकती है और इस्तेमाल किए गए रंग के प्रकार और मात्रा पर निर्भर करती है।

 हमें जितना संभव हो सके, कृत्रिम रंगों वाले खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए। इसके बजाय, ताज़े फल और सब्जियों से प्राप्त प्राकृतिक रंगों वाले आहार को प्राथमिकता देनी चाहिए। खाने-पीने की चीज़ें खरीदते समय उनके लेबल को ध्यान से पढ़ना और आर्टिफिशियल फूड कलर्स (जैसे विभिन्न E-नंबर या कलर कोड) की उपस्थिति की जांच करना महत्वपूर्ण है।

उनका कहना है कि यह छोटा सा कदम उठाकर हम अपने और अपने परिवार के स्वास्थ्य की रक्षा कर सकते हैं और DNA को संभावित नुकसान से बचा सकते हैं। स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता और सही चुनाव ही हमें एक स्वस्थ जीवनशैली की ओर ले जा सकता है।

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