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Up Kiran , Digital Desk: भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया सैन्य संघर्ष भले ही थम गया हो लेकिन इस 100 घंटे के युद्ध ने दोनों देशों के बीच गहरे घाव छोड़े हैं। भारतीय मिसाइलों ने पाकिस्तान के 11 एयरबेस को ध्वस्त कर दिया और उसके एयर डिफेंस सिस्टम को भी भारी क्षति पहुंचाई जिसके बाद पाकिस्तान युद्धविराम के लिए मजबूर हो गया। हालांकि पाकिस्तान का इतिहास बताता है कि वह अपनी हार को आसानी से नहीं भूलेगा और भविष्य में भारत के खिलाफ किसी भी दुस्साहस का प्रयास कर सकता है।

कोई भी युद्ध केवल सीमाओं पर ही नहीं लड़ा जाता बल्कि कूटनीतिक मोर्चे पर भी उतनी ही महत्वपूर्ण लड़ाई लड़ी जाती है। यदि भारत भविष्य में किसी और सैन्य संघर्ष में उलझता है तो उसे अपने पड़ोसी देशों के समर्थन की आवश्यकता होगी। आइए जानते हैं कि ऐसी स्थिति में कौन से पड़ोसी देश भारत के साथ खड़े हो सकते हैं और किन से चुनौती मिल सकती है।

चीन: पुराना दुश्मन नई चुनौतियां

पाकिस्तान के बाद एशिया में भारत का दूसरा सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी चीन रहा है। दोनों देशों के बीच सीमा को लेकर लंबे समय से विवाद चला आ रहा है। कुछ साल पहले डोकलाम में हुई सैन्य झड़प ने भारत और चीन के रिश्तों को एक नए निचले स्तर पर पहुंचा दिया था। हालांकि हाल के दिनों में दोनों देशों ने आपसी संबंधों को सुधारने के प्रयास किए हैं। फिर भी चीन का ऐतिहासिक रुख पाकिस्तान के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रहा है। पहलगाम हमले के बाद जब भारत ने पाकिस्तान पर कार्रवाई की तो चीन उन देशों में से एक था जिसने खुलकर भारत का विरोध किया था। ऐसे में भविष्य में किसी भी संघर्ष की स्थिति में चीन भारत के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है।

मालदीव: बदलता समीकरण चिंताएं बरकरार

मालदीव और भारत के संबंध परंपरागत रूप से सौहार्दपूर्ण रहे हैं लेकिन हालिया राजनीतिक घटनाक्रमों ने इस समीकरण को बदल दिया है। मोहम्मद मुइज्जु की सरकार के सत्ता में आने के बाद मालदीव का झुकाव चीन की ओर बढ़ता दिखाई दे रहा है। मुइज्जु ने भारत विरोधी कैंपेन के जरिए ही सत्ता हासिल की थी जिसके चलते भारत और मालदीव के रिश्तों में खटास आ गई है। यदि भारत किसी युद्ध में उलझता है तो मालदीव का रुख भारत के खिलाफ हो सकता है।

श्रीलंका: आर्थिक संकट कूटनीतिक समर्थन की उम्मीद

श्रीलंका और भारत के बीच सदियों पुराने सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध हैं। भारत ने कई मौकों पर आगे बढ़कर श्रीलंका की मदद की है। हालांकि यह देश पिछले कुछ वर्षों से राजनीतिक अस्थिरता और गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है। ऐसे में यदि भारत किसी युद्ध में उलझता है तो श्रीलंका अपनी आर्थिक मजबूरियों के चलते खुलकर भारत का सैन्य समर्थन करने की स्थिति में नहीं होगा। हालांकि कूटनीतिक स्तर पर यह देश भारत का साथ दे सकता है या तटस्थ रुख अपना सकता है।

नेपाल: वफादार पड़ोसी सीमित क्षमता

श्रीलंका की तरह नेपाल भी भारत के साथ गहरे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध साझा करता है। दोनों देशों ने लंबे समय से एक-दूसरे के प्रति निष्ठा दिखाई है। नेपाल भारत को कूटनीतिक रूप से समर्थन दे सकता है। पहलगाम हमले के बाद भी नेपाल ने आतंकी हमले की कड़ी निंदा करते हुए भारत का समर्थन किया था और अपनी जमीन को भारत के खिलाफ इस्तेमाल न होने देने की बात कही थी। हालांकि सैन्य समर्थन देने की क्षमता नेपाल के पास सीमित है।

भूटान: अटूट बंधन सुरक्षा की जिम्मेदारी

भूटान और भारत घनिष्ठ सहयोगी हैं और भूटान कई क्षेत्रों में भारत पर निर्भर करता है। युद्ध की स्थिति में यह देश निश्चित रूप से भारत को कूटनीतिक समर्थन देगा। सैन्य समर्थन की बात करें तो भारत स्वयं भूटान की सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाता रहा है।

अफगानिस्तान: तालिबान का बदलता रुख भारत के लिए मौके

तालिबान के सत्ता में आने से पहले भारत और अफगानिस्तान के बीच मजबूत द्विपक्षीय संबंध थे। अफगानिस्तान लंबे समय से भारत का एक महत्वपूर्ण सहयोगी रहा है। हालांकि तालिबान के कब्जे के बाद दोनों देशों के बीच बातचीत और व्यापार में कमी आई थी। लेकिन अब परिस्थितियां बदल रही हैं और तालिबान का झुकाव एक बार फिर भारत की ओर बढ़ रहा है जिसके चलते भारत सरकार ने भी तालिबान के साथ बातचीत शुरू की है। रणनीतिक रूप से युद्ध की स्थिति में अफगानिस्तान भारत के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। तालिबान के सत्ता में आने के बाद अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया है और दोनों देश एक-दूसरे पर आतंकी हमलों का आरोप लगाते रहे हैं। पाकिस्तान के साथ तालिबान की बढ़ती दुश्मनी भारत के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक लाभ हो सकती है।

बांग्लादेश: तख्तापलट के बाद बदलते रिश्ते चिंताएं बढ़ीं

बांग्लादेश की आजादी के बाद से ही यह देश भारत का एक महत्वपूर्ण सहयोगी रहा है। शेख हसीना की सरकार के दौरान भारत और बांग्लादेश ने एक अच्छे पड़ोसी की भूमिका निभाई। हालांकि हाल ही में हुए तख्तापलट के बाद यूनुस सरकार के साथ भारत के रिश्ते तनावपूर्ण होते जा रहे हैं। वहीं बांग्लादेश की कार्यवाहक सरकार पाकिस्तान के साथ संबंधों को बेहतर बनाने पर जोर दे रही है। ऐसे में बांग्लादेश और पाकिस्तान की बढ़ती दोस्ती भारत के लिए चिंता का विषय बन सकती है।

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