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आयातुल्लाह अली खामेनेई का जन्म 16 जुलाई 1939 को माशहद, ईरान में हुआ था  । युवा उम्र में ही उन्होंने शाह की ज़ुल्म आदर्श के खिलाफ आवाज उठाई। 1960-70 के दशक में शाह की तानाशाही सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर कारावास और यातनाएँ दीं  ।

1979 की इस्लामी क्रांति के बाद, खामेनेई अब्दुल्लाह खुमैनी के करीबी सहयोगी बने। 1981 में हुए एक बम हमले में उन्हें गंभीर चोटें आईं और उनका एक हाथ लकवाग्रस्त हो गया  । इसके बाद उन्होंने ईरान के रक्षा मंत्री और 1981–1989 तक राष्ट्रपति की भूमिका निभाई। 1989 में खुमैनी के निधन के बाद खामेनेई ईरान के सर्वोच्च नेता बन गए  ।

सुप्रीम लीडर बनने के बाद खामेनेई ने सत्ता का केंद्रीकरण किया और कई महत्वपूर्ण संस्थाओं जैसे इरान की क्रांतिकारी गार्ड को मजबूत किया  । उन्होंने कट्टर रूप से यहूद-विरोधी विचार अपनाते हुए इज़राइल को “कैंसर” और “भड़काऊ कुत्ता” करार दिया  । 2015 में उन्होंने कहा था कि अगले 25 वर्षों में इज़राइल खत्म हो जाएगा  ।

खामेनेई की विदेश नीति में इज़राइल विरोध प्रदर्शन अकसर दिखाई देते रहते हैं। उन्होंने कहा कि यहूदियों का राज्य “अवैध” है और किसी भी स्थिति में उसका विनाश हो सकता है  । इन्होंने इज़राइल के खिलाफ हथियारबद्ध संगठनों, जैसे हिज़्बुल्लाह व हमास, का भी समर्थन किया  ।

हालिया घटनाओं में, उनके नेतृत्व में इज़राइल और ईरान के बीच खुले युद्ध की नौबत आई है। इज़राइली रक्षा मंत्री ने खामेनेई को सीधे निशाना बनाना शुरू कर दिया और उनका अस्तित्व ही “स्वीकार्य नहीं” करार दिया  ।

देश के भीतर भी सार्वजनिक विरोध खामेनेई की कठोर नीतियों के कारण बढ़ा हुआ है। युवा, महिलाएँ और शहरों के लोग “वर्दी हटा दी” जैसी नारों के साथ सड़कों पर उतर रहे हैं  । इन आंतरिक चुनौतियों के बीच, खामेनेई की विदेश नीति ने उन्हें ईरान-इज़राइल संघर्ष का चेहरा बना दिया है।

 

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