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Up Kiran, Digital Desk: केंद्र सरकार ने पंजाब विश्वविद्यालय के प्रशासनिक ढांचे में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए उसकी 59 साल पुरानी सीनेट और सिंडिकेट को भंग कर दिया है। यह आदेश 31 अक्टूबर को जारी हुआ था और 5 नवंबर से लागू होगा। यह पहला मौका है जब विश्वविद्यालय के सबसे उच्चतम निर्णय लेने वाले निकाय, जिन्हें 1882 में स्थापित किया गया था, पूरी तरह से समाप्त कर दिए गए हैं।

क्या है केंद्र सरकार का नया आदेश?

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मंजूरी के बाद, चंडीगढ़ प्रशासन ने पंजाब विश्वविद्यालय अधिनियम, 1947 की धारा 20(1)(ए) के तहत एक नई अधिसूचना जारी की। इसके अनुसार, अब विश्वविद्यालय का संचालन कुलपति की अध्यक्षता में एक बोर्ड ऑफ गवर्नर्स (बीओजी) द्वारा किया जाएगा, जिसमें केंद्र सरकार, यूजीसी और चंडीगढ़ प्रशासन के प्रतिनिधि शामिल होंगे।

अब नहीं होंगे चुनाव

केंद्र सरकार के आदेश के बाद, विश्वविद्यालय में सीनेट के चुनाव नहीं होंगे, और स्नातक मतदाताओं का प्रतिनिधित्व भी समाप्त हो जाएगा। इससे पहले, विश्वविद्यालय की 91 सदस्यीय सीनेट और 15 सदस्यीय सिंडिकेट विश्वविद्यालय की नीतियों और बजट का निर्धारण करते थे, लेकिन अब यह अधिकार नए मनोनीत बोर्ड को सौंप दिया जाएगा।

"लोकतांत्रिक ढांचे पर हमला" – विरोध प्रदर्शन

केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद, विश्वविद्यालय के कई संकायों, छात्र संगठनों और पूर्व छात्रों ने इसे "लोकतांत्रिक ढांचे पर हमला" करार दिया है। उनका कहना है कि सीनेट और सिंडिकेट ही वह मंच थे जहाँ छात्र, संकाय और पूर्व छात्र अपनी आवाज उठा सकते थे, और अब उनका यह अधिकार समाप्त कर दिया गया है।

सुखबीर सिंह बादल का विरोध

इस फैसले की कड़ी आलोचना शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने की है। उन्होंने कहा, "केंद्र सरकार का यह फैसला पंजाब विश्वविद्यालय की सीनेट को भंग करने और उसमें पंजाब की भागीदारी समाप्त करने का है। यह न केवल देश के संघीय ढांचे का अपमान है, बल्कि पंजाब के शैक्षिक और बौद्धिक ढांचे पर भी हमला है।" उन्होंने यह भी जोड़ा कि यह निर्णय 'पंजाब दिवस' के अवसर पर लिया गया है, जब हजारों पंजाबियों ने बलिदान दिया था।