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Up Kiran , Digital Desk: अब तक जिन आशंकाओं को लेकर चर्चा होती रही, वे अब हकीकत बनकर सामने आ चुकी हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया सैन्य संघर्ष ने स्पष्ट कर दिया कि चीन ने पर्दे के पीछे रहकर पाकिस्तान को हर संभव समर्थन दिया। भले ही बीजिंग ने सार्वजनिक रूप से कोई बयान नहीं दिया हो, लेकिन पाकिस्तान की सैन्य क्षमता को मजबूत करने में उसकी भागीदारी अब छिपी नहीं रही।

जानकारी के मुताबिक, चीन ने पाकिस्तान को न केवल अत्याधुनिक हथियार दिए, बल्कि तकनीकी मदद और खुफिया जानकारी भी साझा की। पाकिस्तान की ओर से हमलों में जिन सैन्य संसाधनों का इस्तेमाल हुआ, उनमें चीन निर्मित J-10 फाइटर जेट और HQ-9 एयर डिफेंस सिस्टम प्रमुख थे। लेकिन हैरानी की बात यह रही कि इन हथियारों की वास्तविक क्षमता इस संघर्ष में बुरी तरह उजागर हो गई। भारत की वायु शक्ति के आगे पाकिस्तान का चीनी सुरक्षा कवच कहीं टिक नहीं पाया।

इस पूरे घटनाक्रम में चीन की रणनीतिक चाल भी सामने आई। चीन ने पाकिस्तान को युद्ध के मैदान में एक प्रयोगशाला की तरह इस्तेमाल किया, जहां उसने अपने हथियारों की 'लाइव टेस्टिंग' की। लेकिन ये परीक्षण चीन के लिए फायदे की जगह फजीहत का कारण बन गए। दुनिया ने देखा कि जिन हथियारों को अत्याधुनिक कहा जाता था, वे भारतीय सेना के सामने टिक नहीं सके।

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) से जुड़े वरिष्ठ रक्षा विश्लेषक साइमन वेज़मैन का कहना है कि हथियार निर्माता देशों के लिए असली परीक्षा युद्ध होता है – और चीन इस परीक्षा में फेल हो गया।

जहां भारत सरकार ने अब तक चीन की प्रत्यक्ष भूमिका पर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की है, वहीं पाकिस्तान ने स्वीकार किया है कि उसे चीन से सैन्य मदद मिली। चीन ने न केवल हथियार, बल्कि लॉजिस्टिक और इंटेलिजेंस सपोर्ट भी मुहैया कराया।

यह संघर्ष बीते कई वर्षों में भारत-पाक के बीच सबसे बड़ा सैन्य टकराव रहा। दोनों देशों के बीच ड्रोन, मिसाइल और हवाई हमले हुए, वहीं सीमाओं पर तोपों और हल्के हथियारों से भी ज़ोरदार फायरिंग हुई।

इस संघर्ष ने यह भी सिद्ध कर दिया कि "चाइनीज़ माल" की छवि केवल उपभोक्ता उत्पादों तक सीमित नहीं, बल्कि सैन्य क्षेत्र में भी उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठते हैं।

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