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Up Kiran, Digital Desk: इजराइल के साथ हुए हालिया युद्ध के लगभग दो महीने बाद ईरान ने एक चौंकाने वाला दावा किया है। ईरानी रक्षा मंत्री अजीज़ नासिरजादेह ने कहा है कि ईरान ने कई देशों में अपने रक्षा ढांचे और हथियार कारखानों की स्थापना की है। हालांकि उन्होंने इन स्थानों का सीधा खुलासा नहीं किया, लेकिन माना जा रहा है कि ये ठिकाने सीरिया, लेबनान, इराक और यमन में हो सकते हैं।

युद्ध के बाद बदली प्राथमिकताएं

नासिरजादेह ने कहा कि इस युद्ध ने ईरान की सैन्य रणनीतियों और प्राथमिकताओं में बड़ा बदलाव किया है। अब ध्यान केवल मिसाइलों तक सीमित नहीं है, बल्कि अन्य आधुनिक हथियार प्रणालियों पर भी दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि बीते साल नए वॉरहेड्स का परीक्षण किया गया था, जिन्हें अब और अधिक उन्नत रूप में तैयार किया जा चुका है।

"15 दिन चलता युद्ध तो इजराइल हार मान जाता"

ईरानी रक्षा मंत्री ने कहा, "अगर जून में छिड़ा संघर्ष 12 के बजाय 15 दिन चला होता, तो इजराइली सेना हमारी मिसाइलों को रोक पाने में बिल्कुल नाकाम रहती।" उनका दावा है कि इजराइल को अमेरिका के दखल के बाद ही युद्धविराम के लिए तैयार होना पड़ा।

उन्होंने यह भी कहा कि संघर्ष के दौरान ईरान ने अपनी मीडियम-रेंज की हाइटेट कासिम बसीर बैलिस्टिक मिसाइल का प्रयोग नहीं किया था। इस मिसाइल की मारक क्षमता लगभग 1,200 किलोमीटर बताई जाती है।

हालिया सैन्य अभ्यास

ईरान ने यह बयान 21 अगस्त को ओमान के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास के बाद दिया। इस अभ्यास में ईरानी नेवी ने ओमान की खाड़ी और उत्तरी हिंद महासागर में क्रूज मिसाइलों का परीक्षण भी किया। इजराइल युद्ध के बाद यह ईरान का पहला बड़ा सैन्य अभ्यास माना जा रहा है।

इजराइल-ईरान युद्ध की पृष्ठभूमि

13 जून को इजराइल ने ईरान के परमाणु ठिकानों और सैन्य ठिकानों पर एयरस्ट्राइक की थी। इस हमले में ईरान के शीर्ष कमांडरों, परमाणु वैज्ञानिकों और 1,000 से ज्यादा लोगों के मारे जाने की रिपोर्ट आई थी। इसके जवाब में ईरान ने ड्रोन और मिसाइल हमले किए, जिनमें दर्जनों इजरायली नागरिक और सैनिक मारे गए। 24 जून को दोनों देशों के बीच युद्धविराम लागू हुआ।

"एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस" क्या है?

मध्य पूर्व में ईरान ने वर्षों पहले एक अनौपचारिक राजनीतिक और सैन्य गठबंधन तैयार किया है, जिसे "एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस" कहा जाता है। इस धड़े में ईरान, सीरिया, लेबनान, इराक और यमन जैसे देश शामिल हैं, साथ ही कई उग्रवादी संगठन भी इससे जुड़े हैं। इनमें प्रमुख रूप से हिजबुल्लाह, हूती विद्रोही और हमास आते हैं। इसका उद्देश्य पश्चिमी प्रभाव और इजराइल के दबदबे का मुकाबला करना है।