
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के मद्देनजर दलित वोट बैंक (लगभग 19–20%) पर रणनीतिक लड़ाई शुरू हो गई है। इस बीच चिराग पासवान (लोक जनशक्ति पार्टी) और जीतन राम मांझी (हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा – सेक्युलर) दोनों ही खुद को इस वोट बैंक का सबसे बड़ा नेता साबित करने में लगे हुए हैं ।
1. दलित आबादी और राजनीतिक महत्व:
बिहार में दलित वोटर लगभग 19–19.65% हैं, जो राज्य की राजनीतिक ताकत को प्रभावित करते हैं। इनमें से कई महादलित जातियाँ जैसे मुसहर, भुइयां आदि शामिल हैं ।
2. चिराग पासवान का दावा और ताकत:
चिराग पासवान, रामविलास पासवान के राजनीतिक उत्तराधिकारी, पासवान जाति में अपनी मजबूत पकड़ बनाए हुए हैं। लोजपा ने पिछले चुनावों में लगभग 6% वोट हासिल किए, जो मांझी की पार्टी की तुलना में छह गुना अधिक है ।
चिराग SC‑ST आरक्षण में क्रीमी लेयर कोटे का विरोध करते हैं और कहते हैं कि समृद्ध दलितों को आरक्षण छोड़ देना चाहिए ताकि वास्तविक जरूरतमंदों को लाभ मिल सके ।
3. जीतन राम मांझी की स्थिति:
मांझी महादलित वर्ग विशेषकर मुसहर जाति में प्रभाव रखते हैं और पहले बिहार के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। वे सुप्रीम कोर्ट के आरक्षण निर्णय का समर्थन करते हैं और कहते हैं कि कोटा विभाजन दलित समुदाय के हित में है ।
मांझी की राजनीतिक ताकत सीमित है लेकिन गठबंधन में वे महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं—‘किंगमेकर’ की तरह काम कर सकते हैं ।
4. मतभेद और संघर्ष:
चिराग और मांझी दोनों SC‑ST आरक्षण के फैसले पर अलग-अलग रुख रखते हैं, जिससे दोनों के बीच जुबानी टकराव तेज हुआ है। यह विभाजन चुनावी रणनीति व वोट बैंक स्लाइसिंग को प्रभावित कर सकता है ।
5. आंकड़े क्या कहते हैं?
चिराग पासवान को पासवान वोट बैंक में सबसे अधिक लोकप्रिय समझा जाता है; वहीं मांझी महादलित वोटरों, विशेषकर मुसहर समुदाय में अपनत्व रखते हैं। बिहार की 19–20% दलित आबादी में इन दोनों के अलावा अन्य जातीय नेताओं की भी छवि महत्वपूर्ण है।
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