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Up Kiran, Digital Desk: जम्मू-कश्मीर को लेकर एक बार फिर से चर्चाओं का दौर गर्म है, मगर इस बार केंद्र में नहीं बल्कि आम जनता की उम्मीदों और राजनीतिक हलचलों में। सालों से राज्य के लोग अपनी राजनीतिक पहचान की बहाली की माँग कर रहे हैं और अब ऐसा लग रहा है कि यह मांग फिर से राजनीतिक केंद्र बिंदु बनती जा रही है।

दरअसल, हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात की। वहीं, एनडीए की संसदीय बैठक भी तय हो चुकी है। इन घटनाओं को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं कि क्या सरकार 5 अगस्त को एक और बड़ा कदम उठाने जा रही है। यह वही तारीख है, जब 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया था और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया गया था।

पिछले छह वर्षों में केंद्र सरकार ने बार-बार यह दोहराया है कि जम्मू-कश्मीर को फिर से पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाएगा, मगर "उचित समय" का हवाला देते हुए तारीख टाल दी गई। अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या यह "उचित समय" आ गया है?

इस पूरे परिदृश्य में एक और आवाज़ गूंज रही है पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला की। उन्होंने आर्टिकल 370 हटने की छठी वर्षगांठ से ठीक एक दिन पहले सरकार से पूछा कि आखिर राज्य का दर्जा बहाल कब होगा? साथ ही उन्होंने यह भी मांग रखी कि राज्यसभा की चार खाली सीटों पर भी चुनाव कराए जाएं ताकि केंद्र में जम्मू-कश्मीर की आवाज़ फिर से सुनी जा सके।

जम्मू-कश्मीर की जनता लंबे समय से राजनीतिक अस्थिरता और नेतृत्व के अभाव को झेल रही है। विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया अभी अधूरी है, और लोगों की लोकतांत्रिक भागीदारी सीमित है। ऐसे में अगर राज्य का दर्जा बहाल होता है, तो यह केवल संवैधानिक निर्णय नहीं बल्कि जनता की राजनीतिक पहचान और आत्मसम्मान की बहाली होगी।

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