children death: बीते कई महीनों से राजधानी दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण का स्तर गंभीर से अति गंभीर श्रेणी में बना हुआ है. 400 या इससे अधिक वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) पर रहना कई मायनों में स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना जाता है। मंगलवार (26 नवंबर) सवेरे लगभग 6:30 बजे दिल्ली के कई हिस्सों में AQI 396 से 400 तक दर्ज किया गया. रोहिणी और विवेक विहार में AQI 430 से ऊपर था. इस प्रकार की वायु गुणवत्ता से अल्पकालिक और दीर्घकालिक प्रतिकूल प्रभाव का खतरा होता है।
वायु प्रदूषण और उससे जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ी एक स्टडी की रिपोर्ट काफी डरावनी है. कोलैबोरेशन फॉर एयर पॉल्यूशन एंड हेल्थ इफेक्ट्स रिसर्च (सीएपीएचआर) इंडिया के 2023 के विश्लेषण में कहा गया है कि बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण बच्चों में गंभीर बीमारियों और मौतों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है। 2019 में बाहरी वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की सबसे ज्यादा मौतें हुईं। इसके बाद हरियाणा और पंजाब में भी बच्चों की मृत्यु दर बहुत अधिक रही।
प्रदूषण के कारण बच्चों की मौत का खतरा बढ़ गया
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये आंकड़े वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों से संबंधित पिछले शोध और भविष्यवाणी मॉडल पर आधारित हैं। यह रिपोर्ट अभी तक सार्वजनिक डोमेन में नहीं रखी गई है. रिपोर्ट के अनुसार, अकेले 2019 में बाहरी स्रोतों से प्रदूषण और हवा में पीएम 2.5 में वृद्धि के साथ-साथ खाना पकाने के लिए ठोस ईंधन के उपयोग के कारण भारत में 1.6 लाख से अधिक मौतें हुईं, जिनमें से 1.5 लाख से अधिक मौतें 14 साल के उम्र के बच्चों की हुई। बाकि एक वर्ष छोटे बच्चों से संबंधित थे।
भारत में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु के लिए वायु प्रदूषण को तीसरा प्रमुख जोखिम कारक बताया गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि वायु प्रदूषण के नकारात्मक प्रभाव से बच्चे अत्यधिक प्रभावित होते हैं। इतना ही नहीं, इसका उनके पूरे जीवन काल पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
दिल्ली समेत कई राज्य प्रभावित हैं
रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2019 में उत्तराखंड, राजस्थान, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में आउटडोर पीएम 2.5 से संबंधित मौतों का प्रतिशत बढ़ गया। जबकि गोवा, सिक्किम और हिमाचल प्रदेश में कुछ गिरावट देखी गई। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में, पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की 10% से अधिक मौतें घर में खाना पकाने के लिए ठोस ईंधन के उपयोग से जुड़ी हैं।
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