
Up Kiran, Digital Desk: पश्चिम बंगाल की राजनीति हमेशा से दिलचस्प रही है, और हाल ही में हुई तृणमूल कांग्रेस (TMC) की 'शहीद दिवस' रैली ने एक बार फिर सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है। इस रैली में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपनी चिर-परिचित आक्रामक शैली के विपरीत, विपक्षी 'INDIA' गठबंधन और कांग्रेस पर सीधा हमला करने से परहेज किया। ममता की यह 'चुप्पी' अब कांग्रेस नेताओं के बीच सावधानीपूर्वक आकलन का विषय बन गई है।
ममता की 'खामोशी': एक रणनीतिक संदेश? आमतौर पर, ममता बनर्जी अपने भाषणों में विपक्ष, खासकर कांग्रेस पर तीखे हमले बोलती रही हैं, खासकर सीट-बंटवारे के मुद्दों पर। लेकिन इस बार, उनके भाषण में कांग्रेस या INDIA गठबंधन के खिलाफ कोई सीधा कटाक्ष नहीं था। इस 'खामोशी' को कई राजनीतिक विश्लेषक INDIA गठबंधन के भीतर एकता बनाए रखने की दिशा में एक सकारात्मक लेकिन सतर्क संकेत के रूप में देख रहे हैं। यह ऐसे समय में आया है जब कई कांग्रेस नेताओं पर प्रवर्तन निदेशालय (ED) की कार्रवाई चल रही है, फिर भी ममता ने उन मुद्दों पर सीधे टिप्पणी नहीं की।
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि ममता बनर्जी ने जानबूझकर यह मौन धारण किया है ताकि INDIA गठबंधन के भीतर तनाव को और न बढ़ाया जा सके। यह आगामी चुनावों के लिए गठबंधन की संभावनाओं को खुला रखने की एक रणनीति हो सकती है, खासकर जब राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का मुकाबला करने की बात आती है।
बंगाल कांग्रेस में सतर्कता: उम्मीद और संदेह के बीच पश्चिम बंगाल कांग्रेस के नेता इस घटनाक्रम को लेकर सतर्कता बरत रहे हैं। एक तरफ वे इसे INDIA गठबंधन के लिए एक अच्छा संकेत मान रहे हैं, वहीं दूसरी ओर वे ममता बनर्जी के पिछले राजनीतिक रुख को भी नहीं भूले हैं।
एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "यह निश्चित रूप से एक सकारात्मक संकेत है कि दीदी ने हम पर सीधा हमला नहीं किया, लेकिन हम अभी भी इंतजार कर रहे हैं कि क्या यह सिर्फ एक अस्थायी रणनीति है या गठबंधन के प्रति उनकी वास्तविक प्रतिबद्धता।" उनका मानना है कि जब तक ठोस कार्रवाई और सीट-बंटवारे पर स्पष्टता नहीं आती, तब तक पूरी तरह से भरोसा करना जल्दबाजी होगी।
कांग्रेस नेताओं को अभी भी पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान हुए अनुभवों की याद है, जब टीएमसी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के बजाय अकेले लड़ने का फैसला किया था। इसके अलावा, राज्य स्तर पर कांग्रेस और टीएमसी के बीच कई मुद्दों पर तीखी प्रतिद्वंद्विता बनी हुई है। कोयला तस्करी मामले जैसे मुद्दों पर कांग्रेस लगातार टीएमसी पर हमलावर रही है, और ऐसे में ममता की चुप्पी को 'समझौते' के बजाय 'रणनीतिक विराम' के रूप में देखा जा रहा है।
आगे क्या? गठबंधन का भविष्य ममता बनर्जी की 'शहीद दिवस' रैली से निकला यह 'खामोश संदेश' पश्चिम बंगाल की राजनीति और INDIA गठबंधन के भविष्य के लिए कई सवाल खड़े करता है। कांग्रेस नेता सावधानी से इस स्थिति का आकलन कर रहे हैं, यह देखने के लिए कि क्या यह चुप्पी भविष्य में किसी बड़े राजनीतिक सहयोग का आधार बनेगी या फिर यह सिर्फ एक और सियासी दांव है, जिसे वक्त आने पर बदला जा सकता है।
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