Up Kiran, Digital Desk: लखनऊ से लेकर तराई के सुदूर जंगलों तक एक बात अब साफ सुनाई देती है। उत्तर प्रदेश में जो सरकार पहले सिर्फ कानून-व्यवस्था के नाम पर चर्चा में रहती थी वही सरकार अब चुपचाप सामाजिक न्याय की सबसे बड़ी मिसाल पेश कर रही है। खासकर अनुसूचित जाति जनजाति और पिछड़े वर्गों के लिए पिछले आठ सालों में जो काम हुआ है उसकी गूंज अब गांव-गांव तक पहुंच रही है।
517 गांव जहां 100 फीसदी योजनाएं पहुंचीं
साल 2021 में शुरू हुआ ‘धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान’ अब अपनी मंजिल पर है। प्रदेश के 26 जिलों में चुने गए 517 ऐसे गांव जहां जनजातीय आबादी सबसे ज्यादा थी वहां हर घर तक सरकारी योजनाएं पहुंचाने का टारगेट रखा गया था। आज वह टारगेट पूरा हो चुका है।
ग्यारह लाख से ज्यादा लोगों को पहली बार पक्की सड़क बिजली पेयजल और शौचालय मिले। बुक्सा समुदाय के 815 परिवारों को प्रधानमंत्री आवास और मुख्यमंत्री आवास योजना से पक्के मकान मिले। थारू और बंजारा परिवारों के बच्चों को अब स्कूल जाने के लिए कीचड़ भरे रास्तों से नहीं गुजरना पड़ता।
जंगल में रहने वालों को भी मिला जमीन का मालिकाना हक
वन अधिकार कानून 2006 को कागज से उतारकर जमीन पर उतारने का सबसे बड़ा काम उत्तर प्रदेश में ही हुआ। तेईस हजार से ज्यादा वनवासी परिवारों के दावे पास हुए। जिस जमीन पर पीढ़ियों से खेती कर रहे थे आज उसके कागज उनके नाम हैं। यह सिर्फ कागज नहीं बल्कि सम्मान की लड़ाई थी जो जीती गई।
शिक्षा के मोर्चे पर भी आंकड़े हैरान करते हैं। डेढ़ लाख से ज्यादा जनजातीय बच्चों को स्कॉलरशिप और फीस वापसी मिली। लखीमपुर खीरी और बलरामपुर में बने नौ आश्रम पद्धति स्कूलों में दो हजार बच्चे रहकर पढ़ रहे हैं। पहली बार तराई के बच्चों को हॉस्टल की सुविधा मिली है।
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