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Up Kiran, Digital Desk: राजस्थान के जैसलमेर में हुए दर्दनाक बस हादसे ने आम लोगों की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। हादसे में जलकर मरने वाले 20 यात्रियों की जान किसी तकनीकी खराबी से नहीं, बल्कि लापरवाही और नियमों की अनदेखी से गई। अब जांच में सामने आया है कि जिस बस में ये हादसा हुआ, उसका पंजीकरण चित्तौड़गढ़ में नॉन-एसी के रूप में किया गया था, लेकिन इसके बाद बिना अनुमति के उसमें एसी लगवाया गया।
बस हादसे से बिफरा जनमानस, नई बस में इतनी बड़ी चूक कैसे?
सवाल यह है कि 1 अक्टूबर को सड़क पर उतरी एक नई बस महज 14 दिन में ऐसी हालत में कैसे पहुंच गई कि उसमें आग लगने से 20 लोगों की जान चली गई? क्या कोई तकनीकी खामी थी या फिर सिस्टम की अनदेखी? शुरुआती जांच इशारा करती है कि बस में नियमों के खिलाफ जाकर एसी लगवाया गया था, और यहीं से इस दुखद घटना की नींव पड़ी।
चित्तौड़गढ़ में पंजीकरण, लेकिन बदलाव की जानकारी विभाग को नहीं
सरकारी दस्तावेजों की जांच से साफ हो गया है कि यह बस चित्तौड़गढ़ आरटीओ कार्यालय में नॉन-एसी कैटेगरी में रजिस्टर्ड थी। लेकिन बस मालिक ने कुछ ही दिनों में इसमें एसी लगवा लिया, वो भी बिना परिवहन विभाग को सूचित किए। अब सवाल उठ रहा है कि क्या परिवहन विभाग की निगरानी व्यवस्था इतनी ढीली है कि उन्हें कोई जानकारी ही नहीं मिली?
कलेक्टर ने लिया संज्ञान, अधिकारियों से मांगा जवाब
हादसे के बाद राज्य सरकार के निर्देश पर चित्तौड़गढ़ जिला कलेक्टर आलोक रंजन ने खुद आरटीओ कार्यालय पहुंचकर पूरी जानकारी ली। उन्होंने दस्तावेजों की बारीकी से जांच की और वहां मौजूद प्रादेशिक परिवहन अधिकारी नेमीचंद पारीक और जिला परिवहन अधिकारी नीरज शाह से जवाब-तलब किया। अधिकारियों ने माना कि बस का रजिस्ट्रेशन नॉन-एसी के तौर पर ही हुआ था।
केवल 15 दिन में कैसे हुआ इतना बड़ा बदलाव?
जांच में यह भी सामने आया है कि बस का बिल 21 मई का है और तीन महीनों में इसकी बॉडी बनकर तैयार हुई थी। 1 अक्टूबर को यह नॉन-एसी के रूप में पास हुई और फिर 14 अक्टूबर को हादसा हो गया। मात्र दो हफ्तों में हुए इस बड़े बदलाव की जिम्मेदारी कौन लेगा? परिवहन अधिकारी खुद कहते हैं कि यह बदलाव कैसे हुआ, इसका जवाब बस मालिक ही दे सकता है।