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Up Kiran, Digital Desk: उत्तराखंड के धराली क्षेत्र में हाल ही में चलाए जा रहे रेस्क्यू ऑपरेशन में राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) और राज्य आपदा मोचन बल (एसडीआरएफ) की टीमें संकट की स्थिति में प्रभावी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक पुराने, लेकिन प्रभावी तरीके का सहारा ले रही हैं – सीटी। इन सीटी की आवाज के जरिए नागरिकों को चेतावनी दी जा रही है ताकि वे किसी भी संभावित खतरे से बच सकें।

खतरे से आगाह करने का तरीका

धराली में अब तक बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने के लिए एक मजबूत चेतावनी प्रणाली विकसित नहीं हो सकी है, और ऐसे में एनडीआरएफ की टीम ने खतरे की चेतावनी देने के लिए सीटी का सहारा लिया है। खीर गंगा के ऊपरी क्षेत्र में, जहां मलबा जमा होने के कारण स्थितियां खतरे में पड़ सकती हैं, दो जवानों को तैनात किया गया है। ये जवान, सीटी बजाकर उन लोगों को सतर्क करेंगे, जो बाढ़ जैसे हालात से प्रभावित हो सकते हैं।

एनडीआरएफ के असिस्टेंट कमांडेंट, आरएस धपोला के अनुसार, उनका मुख्य उद्देश्य धराली में जीवित लोगों की खोज करना है। इस प्रक्रिया के तहत, वे जीपीआर (ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार) मशीन का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे लापता व्यक्तियों की तलाश की जा रही है। उन्होंने बताया कि खीर गंगा के ऊपरी क्षेत्र में भारी मलबा जमा हो गया है, और यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई और खतरा न हो, दो जवानों को वहां तैनात किया गया है।

वार्निंग सिस्टम की कमी

उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए कई बड़े दावे किए जाते हैं, लेकिन जब बात सुरक्षा प्रणालियों और चेतावनी के लिए विकसित टेक्नोलॉजी की आती है, तो यह स्थिति चिंताजनक है। आपदा प्रबंधन विभाग ने इस मुद्दे पर कई बार पहल की बात की है, लेकिन वास्तविकता में कोई ठोस कदम अभी तक जमीन पर नहीं दिखा।

इसकी सबसे बड़ी मिसाल धराली रेस्क्यू ऑपरेशन में दिख रही है, जहां आज भी सीटी की आवाज ही मुख्य रूप से चेतावनी का काम कर रही है। यह साफ दर्शाता है कि राज्य में आपदा प्रबंधन की तकनीकी ढांचा अभी भी काफी कमजोर है और नई, अधिक प्रभावी चेतावनी प्रणाली की जरूरत है।

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