उत्तर प्रदेश एटीएस (एटीएस) ने रविवार देर रात एक बेहद हाई-प्रोफाइल कार्रवाई की, जिसमें खालिस्तान कमांडो फोर्स (केसीएफ) ने लंबे समय से सेना में शामिल होकर गैंगस्टर मंगत सिंह मंगा को गिरफ्तार कर लिया। मंगत सिंह पिछले 30 साल से बजाजी की जिंदगी जी रहे थे और उस पर ₹25,000 का मुआवजा घोषित किया गया था।
30 साल से छिपा था मंगत, आखिरी बार चढ़ा पुलिस के हत्थे
1995 में रिक्शा पर जमानत मिलने के बाद ही मंगत सिंह को पूरी तरह से अंडर ग्राउंड हो गया था। कॉन्स्टैंट अपनी चाक-चौबंदियां और पहचान-पहचान वह पुलिस कोमा दे रही है। उत्तर प्रदेश ए हमले और गाजियाबाद पुलिस की एक संयुक्त टीम ने फैजाबाद के आधार पर अमृतसर के टिम्बोवाल गांव में एक सफल ऑपरेशन की संयुक्त टीम को धराशायी कर दिया।
केसीएफ़ का सक्रिय सदस्य और ख़ूंखार इतिहास
गिरफ्तार मंगत सिंह खालिस्तानी कमांडो फोर्स के पूर्व प्रमुख संगत सिंह का छोटा भाई है, जो 1990 में एक आतंकवादी द्वारा मारा गया था।
मंगत सिंह खुद भी केसीएफ के सक्रिय सदस्य हैं।
उन्हें पहली बार 1993 में गाजियाबाद में हत्या की कोशिश, हथियार और टाडा अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया था।
साहिबाबाद थाने में उनके खिलाफ डकैती, खतरनाक और सुरक्षा गार्ड जैसे कम से कम चार मामले दर्ज हैं। इसके बावजूद वह लगातार कानून को चकमा दे रहा है और किसी जासूस की तरह अपना अनुभव दे रहा है।
एटीएस की रणनीति रणनीति और तकनीकी सुपरमार्केट ने कमाल कर दिया
मंगत के अपराधियों में तकनीकी पर्यवेक्षण, कैथोलिक नेटवर्क और स्थानीय वास्तुशिल्पियों की मदद से उनके आश्रम पर नजर रखी गई। अधिकारियों के मुताबिक, मंगत यह बरामदगी हाल ही में अपने गांव लौट आया था कि पुलिस अब उसे ढूंढ नहीं रही है।
लेकिन एटीएस की चौकसी ने उसे आख़िरकार एनकाउंटर में ही ले लिया। अब पूछताछ की जा रही है, ताकि उसके किसी भी तरह के अभावग्रस्त इंटरनेट नेटवर्क से पात्रता या ऋण का पता चल सके।
खालिस्तानी स्लीपर सेल को करारा झटका
एटीएस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस अपराधी को खालिस्तानी नेटवर्क के लिए बड़ा झटका बताया।
"मंगत सिंह लंबे समय से बदमाशी कर रहा था और उसके अपराधियों से केसीएफ के नेटवर्क को तोड़ने में मदद मिली। अब उसे अदालत में सिपहसालार मामलों का सामना करना पड़ेगा और जांच आगे जारी रहेगी।"
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