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उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले का एक छोटा सा गांव कनोडिया, 47 साल पहले एक ऐसी आपदा का गवाह बना जिसे आज भी लोग भुला नहीं पाए हैं। साल 1978 में आई इस भयंकर बाढ़ की शुरुआत हुई थी एक भूस्खलन (लैंडस्लाइड) से, जिसने भागीरथी नदी के प्रवाह को पूरी तरह से रोक दिया था।

लैंडस्लाइड से नदी के सामने विशाल मलबा जमा हो गया, जिससे एक अस्थायी झील बन गई। पानी लगातार जमा होता रहा और दबाव बढ़ता गया। जब यह अवरोध टूटा, तो तेज वेग से पानी ने कनोडिया गांव को अपनी चपेट में ले लिया। इस बाढ़ में कई मकान बह गए, खेत तबाह हो गए और अनेक लोगों की जान चली गई।

स्थानीय लोगों की यादें:


गांव के बुजुर्ग आज भी उस दिन को कांपते हुए याद करते हैं। उनका कहना है कि “सब कुछ सामान्य लग रहा था, पर अचानक धरती फटी और पानी सब कुछ बहा ले गया।” उस समय बचाव के संसाधन बेहद सीमित थे और प्रशासन की पहुंच भी देर से हुई।

क्या कहती है यह त्रासदी:


यह आपदा केवल प्राकृतिक घटना नहीं थी, बल्कि इंसानी लापरवाही का परिणाम भी थी। पहाड़ी इलाकों में अनियोजित निर्माण, जंगलों की कटाई और जलवायु परिवर्तन की अनदेखी ऐसे हादसों की जड़ हैं।

आज की चेतावनी:


कनोडिया की 1978 की बाढ़, आज भी उत्तराखंड के लिए एक चेतावनी है। ऐसी घटनाएं यह दिखाती हैं कि पहाड़ी क्षेत्रों में संतुलित विकास और सतर्कता कितनी जरूरी है।
 

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