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बायोकॉन की चेयरपर्सन और भारत की सबसे सफल बिज़नेस वुमन में से एक, किरण मजूमदार-शॉ, हाल ही में सोशल मीडिया पर अपनी पहचान को लेकर छिड़ी एक बहस में कूद पड़ीं। जब कुछ लोगों ने उनके कन्नडिगा होने पर सवाल उठाए, तो उन्होंने बड़े ही मज़बूत अंदाज़ में जवाब दिया और सबको शांत करा दिया।

क्या था पूरा मामला: दरअसल, सोशल मीडिया पर अक्सर भाषा और क्षेत्रीय पहचान को लेकर बहस छिड़ जाती है। इसी तरह की एक चर्चा में कुछ लोगों ने किरण मजूमदार-शॉ की कन्नड़ पहचान पर सवाल खड़े कर दिए। शायद उनका मानना था कि बड़े शहरों के कामयाब लोग अपनी जड़ों से कट जाते हैं।

किरण मजूमदार-शॉ का करारा जवाब

इस पर किरण मजूमदार-शॉ चुप नहीं बैठीं। उन्होंने साफ़-साफ़ कहा, "मैं एक गर्वित कन्नडिगा हूँ।" उन्होंने बताया कि भले ही वो धाराप्रवाह कन्नड़ नहीं बोल पातीं, लेकिन उनकी रगों में कन्नड़ संस्कृति और पहचान बसती है।

उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि किसी के कन्नडिगा होने का पैमाना सिर्फ़ भाषा नहीं हो सकती। उन्होंने कर्नाटक और बेंगलुरु के विकास में जो योगदान दिया है, वह उनकी पहचान का सबसे बड़ा सबूत है। उन्होंने कहा कि उन्होंने राज्य में हज़ारों नौकरियाँ पैदा की हैं और यहाँ की तरक्की में अपना जीवन लगा दिया है।

उनका यह जवाब उन लोगों के लिए था जो यह मानते हैं कि अगर आप स्थानीय भाषा नहीं बोलते तो आप उस जगह के नहीं हो सकते। किरण ने इस सोच को चुनौती दी और कहा कि असली पहचान योगदान और जुड़ाव से होती है, न कि सिर्फ़ भाषा की जानकारी से।

उनके इस जवाब के बाद सोशल मीडिया पर कई लोगों ने उनका समर्थन किया। लोगों का मानना है कि आज के दौर में पहचान को किसी एक दायरे में बांधना ठीक नहीं है।