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Up Kiran Digital Desk: आजादी का जश्न अपनी जगह था मगर उस जश्न के साथ एक गहरा दर्द भी जुड़ा था - भारत और पाकिस्तान का विभाजन। न सिर्फ जमीन और लोग बंटे बल्कि इस बंटवारे की आंच हमारी फौज और उसके हथियारों तक भी पहुंची। क्या आप जानते हैं जब यह सब हो रहा था तो किस देश के हिस्से में कितने सैनिक आए थे।
मीडिया रिपोर्ट के आंकड़ों की मानें तो विभाजन के बाद एक बड़ा जनसैलाब इधर से उधर गया। लगभग दो लाख 60 हजार लोग जिनमें ज्यादातर हिंदू और सिख थे उन्हें भारत भेजा गया। वहीं पाकिस्तान में उन सैनिकों को भेजा गया जिनकी मुख्य पहचान मुसलमान थी और इनकी संख्या लगभग एक लाख 40 हजार थी। सोचिए अपनी मातृभूमि से दूर होकर एक नए देश में अपनी पहचान के साथ जुड़ना कितना मुश्किल रहा होगा।
इन लोगों ने सेना के बंटवारे में निभाई थी अहम भूमिका
इस बंटवारे की आंच गोरखा ब्रिगेड तक भी पहुंची जो अपनी बहादुरी के लिए जानी जाती है। नेपाल में भर्ती की गई इस वीर ब्रिगेड को भी भारत और ब्रिटेन के बीच बांट दिया गया। इस मुश्किल बदलाव में मदद करने के लिए कई ब्रिटिश अधिकारी भारत में ही रुके रहे। इनमें भारत के पहले सेनाध्यक्ष जनरल सर रॉबर्ट लॉकहार्ट और पाकिस्तान के पहले सेनाध्यक्ष जनरल सर फ्रैंक मेसरवी जैसे बड़े नाम शामिल थे। इन अफसरों ने दोनों देशों के लिए अलग-अलग आर्मी इकाइयों को विभाजित करने में अहम भूमिका निभाई।
फौज का बंटवारा सिर्फ सैनिकों तक ही सीमित नहीं था। पाकिस्तान में 19वीं लांसर्स ने भारत में स्किनर हॉर्स से अपने जाट और सिख सैनिकों का आदान-प्रदान किया ताकि सैनिकों को उनकी धार्मिक पहचान के आधार पर उनके नए देश में भेजा जा सके। यह दिखाता है कि बंटवारा कितना गहरा था और इसने लोगों के जीवन को किस कदर प्रभावित किया था।
हिंदु्स्तान छोड़ने वाली आखिरी सैन्य इकाई समरसेट लाइट इन्फैंट्री (प्रिंस अल्बर्ट) की पहली बटालियन थी जो 28 फरवरी 1948 को बॉम्बे में उतरी थी। यह घटना विभाजन के बाद भी लंबे समय तक चले बदलावों की गवाह है।
सिर्फ थल सेना ही नहीं पाकिस्तानी वायुसेना और नौसेना को भी भारत की तरह ही सीमित संसाधन मिले। उनके हिस्से में भी ज्यादातर पुराने विमान और छोटे जहाज आए। एक नए देश के लिए अपनी रक्षा प्रणाली को खरोंच से खड़ा करना कितना चुनौतीपूर्ण रहा होगा इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल नहीं है।
जमीन ही नहीं बल्कि दो दिलों और परिवारों का भी हुआ था बंटवारा
ये बंटवारा सिर्फ जमीन का नहीं बल्कि दिलों का परिवारों का और एक साझा इतिहास का बंटवारा था। सेना और सैनिकों का बंटवारा उस बड़े दर्द का एक छोटा सा हिस्सा भर है मगर यह हमें उस दौर की मुश्किलों और मानवीय त्रासदी की याद दिलाता रहता है। आज जब हम आजादी की सांस ले रहे हैं तो हमें उन लोगों को कभी नहीं भूलना चाहिए जिन्होंने इस बंटवारे की पीड़ा सही और एक नए भविष्य की नींव रखी।
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