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Up Kiran, Digital Desk: हिंदू धर्म में शनिदेव को नवग्रहों में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उन्हें कर्मफल दाता और न्याय का देवता कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि वे हर व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार उचित फल प्रदान करते हैं। यह जानना दिलचस्प है कि आखिर सूर्य पुत्र शनिदेव को यह "न्याय के देवता" की उपाधि कैसे प्राप्त हुई।

कौन हैं शनिदेव? पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, शनिदेव भगवान सूर्य और उनकी पत्नी देवी छाया के पुत्र हैं। मृत्यु के देवता यमराज उनके बड़े भाई हैं, और यमी (यमुना) उनकी बहन हैं।शनिदेव का वर्ण गहरा (श्याम) है और वे गिद्ध या कौवे पर सवार रहते हैं।[ उनके हाथों में धनुष, बाण, त्रिशूल और तलवार जैसे अस्त्र होते हैं।

कैसे बने न्याय के देवता? कथाओं के अनुसार, शनिदेव को न्याय का देवता बनाने के पीछे स्वयं भगवान शिव का आशीर्वाद है। को पराजित कर दिया। इस युद्ध के बाद, शनिदेव के पिता सूर्यदेव ने शिवजी से क्षमा याचना की। हालांकि, भोलेनाथ शनिदेव की शक्ति, तपस्या और न्यायप्रियता से अत्यंत प्रभावित हुए।

शिवजी ने शनिदेव को दंडाधिकारी नियुक्त करते हुए यह वरदान दिया कि वे समस्त ब्रह्मांड में न्याय के अधिष्ठाता और कर्मों के फलदाता के रूप में पूजे जाएंगे। उन्होंने कहा कि देवता, असुर, मनुष्य या सिद्ध-साधक - कोई भी उनके न्याय से बच नहीं पाएगा।[8] तभी से शनिदेव को "न्याय का देवता" कहा जाने लगा और वे लोगों को उनके अच्छे या बुरे कर्मों का फल प्रदान करने लगे।

शनिदेव को अक्सर क्रूर और भयावह माना जाता है, क्योंकि उनकी साढ़ेसाती और ढैय्या के दौरान व्यक्तियों को कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। हालांकि, यह उनकी क्रूरता नहीं, बल्कि उनके न्याय का स्वरूप है। वे केवल उन लोगों को दंडित करते हैं जो गलत मार्ग पर चलते हैं, और जो धर्म, नैतिकता तथा सत्य का पालन करते हैं, उन्हें शनिदेव शुभ फल और blessings प्रदान करते हैं। इस प्रकार, शनिदेव वास्तव में एक महान शिक्षक हैं जो हमें कर्मों के महत्व को सिखाते हैं और जीवन में अनुशासन व ईमानदारी का पाठ पढ़ाते हैं।

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