
Up Kiran, Digital Desk: आज के डिजिटल दौर में, ऑनलाइन धोखाधड़ी और साइबर क्राइम एक ऐसी सच्चाई बन गए हैं जिसका सामना लगभग हर दिन कोई न कोई करता है। हमारी मेहनत की कमाई एक झटके में गायब हो जाती है और हम सिस्टम के चक्कर काटते रह जाते हैं। इसी गंभीर समस्या पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक बहुत ही सख्त और ज़रूरी टिप्पणी की है।
अदालत ने कहा है कि ऑनलाइन अपराधों से लड़ने के लिए बनाया गया भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (Indian Cyber Crime Coordination Centre or I4C) एक "उम्मीद की किरण" होना चाहिए, न कि एक सोया हुआ सिस्टम जो शिकायतों पर कोई कार्रवाई ही न करे।
क्यों भड़का हाईकोर्ट: यह मामला एक ऐसे व्यक्ति का था, जिसके साथ टेलीग्राम ऐप के ज़रिए एक बड़ा ऑनलाइन फ्रॉड हुआ था। पीड़ित ने अपनी शिकायत नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल पर दर्ज कराई, लेकिन कई महीने बीत जाने के बाद भी उसकी शिकायत पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। जब यह मामला जस्टिस एम. नागप्रसन्ना की बेंच के सामने आया, तो उन्होंने इस ढीले रवैये पर गहरी नाराज़गी जताई।
“सिस्टम को जगाना होगा: जस्टिस नागप्रसन्ना ने कहा, "यह बहुत दुख की बात है कि I4C जैसे महत्वपूर्ण केंद्र को खुद जगाने की ज़रूरत पड़ रही है। यह केंद्र ऑनलाइन अपराधों के खिलाफ एक मशाल की तरह होना चाहिए, लेकिन ऐसा लगता है कि यह खुद ही अँधेरे में है।"
उन्होंने साफ़ शब्दों में कहा कि अगर शिकायतें दर्ज होने के बाद उन पर कार्रवाई ही नहीं होगी, तो लोग ऐसे सिस्टम पर भरोसा कैसे करेंगे?
क्या है यह I4C (ट्रिपल सी): I4C को गृह मंत्रालय ने 2020 में ऑनलाइन अपराधों से लड़ने के लिए एक मास्टर एजेंसी के रूप में स्थापित किया था। इसका मकसद था:
सभी तरह के साइबर अपराधों से निपटना।
कानून लागू करने वाली एजेंसियों को टेक्नोलॉजी और जानकारी से लैस करना।
आम लोगों को साइबर खतरों के बारे में जागरूक करना।
हाईकोर्ट का यह बयान एक चेतावनी है कि सिर्फ सिस्टम बना देना काफी नहीं है, उसे प्रभावी ढंग से काम करना भी चाहिए, ताकि आम आदमी की मेहनत की कमाई को ऑनलाइन धोखेबाज़ों से बचाया जा सके।