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ISRO SpaDeX: ISRO के रोमांचक मिशन स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट (स्पैडेक्स) के लिए 25 घंटे की उल्टी गिनती आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से एक शानदार नजारा देखने को मिली, जब सोमवार रात 10 बजे पीएसएलवी रॉकेट ने उड़ान भरी। रॉकेट ने पहले लॉन्च पैड से धीरे-धीरे उड़ान भरी, जिससे रात का आसमान नारंगी लपटों से चमक उठा।  

इसरो स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट (SpaDeX) के ज़रिए अंतरिक्ष में दो छोटे उपग्रहों को डॉक करने और अनडॉक करने की भारत की क्षमता का परीक्षण करने जा रहा है। ये प्रयोग 7 जनवरी को होने की उम्मीद है। मगर स्पेस डॉकिंग वास्तव में क्या है और यह भारत के लिए इतनी बड़ी बात क्यों है?

क्या है स्पेस डॉकिंग  

डॉकिंग एक चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया है जिसमें दो अंतरिक्ष यान पृथ्वी की परिक्रमा करते समय आपस में जुड़ते हैं। इस तकनीक में महारत हासिल करने से भारत उन चुनिंदा देशों के समूह में शामिल हो जाएगा - जो अमेरिका, रूस और चीन के साथ अंतरिक्ष डॉकिंग में सक्षम चौथा देश बन जाएगा। अंतरिक्ष में डॉकिंग के लिए लागत प्रभावी प्रौद्योगिकी प्रदर्शन मिशन भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि होगी।

इसरो के चेयरमैन डॉ. एस सोमनाथ ने एनडीटीवी से खास बातचीत में इस प्रक्रिया के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि जब अंतरिक्ष में कई ऑब्जेक्ट होते हैं जिन्हें किसी खास मकसद के लिए एक साथ लाना होता है, तो डॉकिंग नामक एक तंत्र की जरूरत होती है।

उन्होंने आगे कहा, "डॉकिंग वो प्रक्रिया है जिसके द्वारा दो अंतरिक्ष वस्तुएं एक साथ आती हैं और जुड़ती हैं।"

इसरो का अंतरिक्ष डॉकिंग इतना बड़ा सौदा क्यों है?

स्पैडेक्स मिशन भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। इसका प्राथमिक लक्ष्य दो डॉक किए गए उपग्रहों के बीच विद्युत शक्ति के हस्तांतरण का प्रदर्शन करना है। यह क्षमता भविष्य की अंतरिक्ष परियोजनाओं, जैसे रोबोटिक मिशन और भारत के नियोजित अंतरिक्ष स्टेशन, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (बीएएस) के निर्माण के लिए आवश्यक है।

डॉकिंग तकनीक भविष्य के कई मिशनों को सरल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। उदाहरण के लिए, अंतरिक्ष स्टेशन बनाने के लिए कक्षा में विभिन्न घटकों को जोड़ने की आवश्यकता होती है। SpaDeX इसे प्राप्त करने के लिए आवश्यक विशेषज्ञता प्रदान करेगा। इसी तरह, चंद्रमा पर अंतरिक्ष यान उतारना, नमूने एकत्र करना और अन्य जटिल कार्य करना इस तकनीक से आसान हो जाएगा।

डॉकिंग प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल तब भी किया जाएगा जब एक ही मिशन लक्ष्य के लिए कई रॉकेटों को एक साथ काम करने की आवश्यकता होगी।

मंगल या उससे आगे के दीर्घकालिक मिशनों के लिए ऐसे अंतरिक्ष यान की आवश्यकता होगी जिन्हें अंतरिक्ष में ही इकट्ठा किया जा सके और ईंधन भरा जा सके। स्पैडेक्स भारत को ऐसी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं के लिए आवश्यक उन्नत उपकरणों से लैस करेगा। यह सेंसर, सॉफ्टवेयर और डॉकिंग विधियों में सुधार करके भविष्य के मिशनों की सुरक्षा को भी बढ़ाएगा।

डॉकिंग में महारत हासिल करने से भारत अमेरिका, रूस और चीन जैसे देशों की कतार में आ जाएगा, जिनके पास पहले से ही यह उन्नत तकनीक है। यह उपलब्धि न केवल वैश्विक अंतरिक्ष अन्वेषण में भारत की स्थिति को मजबूत करेगी, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर इसकी बढ़ती क्षमताओं को भी उजागर करेगी। 

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