
नई दिल्ली: अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) में प्रस्तावित सुधारों को लेकर विशेषज्ञों का मानना है कि इससे भारत की अपेक्षा चीन को अधिक लाभ मिल सकता है। भारत जहां IMF की फंडिंग प्रक्रिया और वीटो पॉवर में व्यापक बदलाव की मांग कर रहा है, वहीं जानकार चेतावनी दे रहे हैं कि ये पहल भारत के लिए दोधारी तलवार साबित हो सकती है।
अर्थशास्त्री मिहिर शर्मा का कहना है कि इस तरह के संस्थागत सुधारों से दिल्ली की बजाय बीजिंग को अधिक ताकत मिलने की संभावना है। उनका तर्क है कि IMF में मतदान अधिकारों और निर्णय प्रक्रिया में बदलाव का सबसे बड़ा लाभ उन देशों को मिलेगा जिनकी आर्थिक शक्ति तेजी से बढ़ रही है — और इस श्रेणी में चीन प्रमुख है।
इस मुद्दे पर विदेश नीति विशेषज्ञ हुसैन हक़्क़ानी भी मिहिर शर्मा से सहमति जताते हैं। हक़्क़ानी का मानना है कि भारत को बहुपक्षीय मंचों का इस्तेमाल करते समय अधिक सतर्क रहना चाहिए, विशेषकर तब जब उसमें चीन जैसे देशों का प्रभाव हो।
हक़्क़ानी ने याद दिलाया कि अतीत में चीन ने कई बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के खिलाफ वीटो का इस्तेमाल किया है। उन्होंने उदाहरण दिया कि जब भारत ने अरुणाचल प्रदेश के विकास के लिए एशियाई विकास बैंक (ADB) से फंड की मांग की थी, तब चीन ने उस पर यह कहकर वीटो लगा दिया था कि यह क्षेत्र भारत और चीन के बीच विवादित है।
इस बीच, पाकिस्तान को 2022 में FATF (फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स) की ग्रे लिस्ट से हटाए जाने के बाद उसके लिए IMF से सहायता प्राप्त करना अपेक्षाकृत आसान हो गया है। इससे क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में भी बदलाव देखने को मिल सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में सुधार की मांग करते हुए इस बात का ध्यान रखना होगा कि उसके कदम कहीं विरोधियों को अधिक लाभ न पहुंचा दें।
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